एक है राजा, एक है रानी..
एक राज्य बहुत बड़ा। वहां समाजवादी सिस्टम में सामंतवाद पलता था और प्रजातंत्र के कंधे पर राजतन्त्र मचलता था। राजपरिवार साल में एक बड़ा जलसा करता था जिसमें स्वनामधन्य विभूतियां कूल्हे मटकाने पहुँचती थीं। सस्ते लोन पर प्रजा वहां खरीदारी कर सकती थी। कवि गण उसे भाषा में भदेस और कायर प्रदेश कहते थे। वहां का एक राजा था जिसके कई भाई और दो रानियां थीं। एक बाईचांस वाली और दूसरी बाईचॉइस वाली। और जैसा होता है बड़ी रानी की मौत हो गई। उसका एक बेटा था जिसे लोकलाज के भय से राजा ने अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। लेकिन यह बात राजा की दूसरी रानी यानी पटरानी पचा नहीं पा रही थी। उसने भी राजा के लिए बरसों तक 'साधना ' की थी और दोनों के खामोश प्यार का 'प्रतीक ' एक बेटा भी था। तो पटरानी को लगा कि राजा ने तो उसके बेटे के लिए कुछ किया ही नहीं। फिर अचानक ऐसा ववंडर आया कि कोई किसी के कहने में नहीं रहा। सभी राजा की दुहाई देते रहे और उसी के सामने पटका पटकी करते रहे। बेचारा राजा, वह संघर्ष के दिनों के भाई और मुसीबत के दिनों के साथी को न छोड़ने की कसम उठाये बैठा था जबकि उसका उत्तराधिकारी दोनों ...