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Showing posts from June, 2016

इमरजेंसी के बहाने

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25 जून का लेख एक दिन लेट  पोस्ट कर रहा हूं आज 25 जून है। एक घंटे बाद 26 जून हो जायेगा। उम्मीद है कि राजसत्ता ऐसा कुछ नहीं करेगी कि सुबह का उजाला अँधियारा लेकर आये। लेकिन 41 साल पहले 26 जून की सुबह रात से भी काली थी। इमरजेंसी लग चुकी थी। इमरजेंसी किसने लगाई ये सबको पता था लेकिन इंदिरा गांधी ने all india radio पर दिए अपने सम्बोधन में कहा था कि राष्ट्रपति के आदेश पर आपातकाल लगाया गया है। उन्होंने लोगों से नहीं घबराने की अपील की थी। लोग वाकई घबराये नहीं थे बल्कि करीब दो साल तक लड़ते रहे थे। चुनाव में जनता ने अपनी ताकत दिखा दी थी। जनता के नायक जेपी ने इस लड़ाई में जाति तोड़ो का भी नारा दिया और कई लोगों ने नाम के आगे से जातिसूचक सरनेम हटा दिया था। शायद संघर्ष वाहिनी में जाने की यह जरूरी शर्त थी। 1990 में विहार विधानसभा से कांग्रेस का सफाया हो गया और जेपी के सिपहसालार सत्ता पर काबिज़ हुए। हालाँकि जाति की राजनीति करने में इन्हें कोई दिक्कत नहीं थी। जेपी सामाजिक छेत्र में परिवर्तन को सम्पूर्ण क्रांति का एक हिस्सा मानते थे और सत्ताधीश सामाजिक न्याय का फलसफा लेकर आये थे।...

जाति से पुलिसिंग???

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.......आपको जानकर हैरानी होगी कि अपने इलाकों के थानेदार तय करने में हम पहले वहां के जाति-समीकरण भी देखते हैं! इसलिए नहीं कि हम अनिवार्यतः जाति-प्रियता में श्रद्धा रखते हैं। इससे उस इलाके की पुलिसिंग आसान हो जाती है। कैसे हो जाती है, यह कभी उस इलाके के थानेदार से एक पत्रकार के तौर पर नहीं, आम आदमी बनकर पूछिएगा....... धर्मेंद्र सिंह, एसएसपी, नोएडा यह कहना है नोएडा के नए एसएसपी धर्मेंद्र सिंह का। उ न्होंने टीवी पत्रकार रवीश के पत्र के जवाब में जो लंबा जवाब लिखा है यह उसका एक अंश है। जाति के आधार पर थानेदार तय करने से इलाके की पुलिसिंग कैसे आसान हो जाती है, यह मेरी समझ से परे है। क्या थानेदार बहुसंख्यक जाति का होना चाहिए या सबसे कम आबादी वाली जाति का। मुझे लगता है कि एसएसपी बहुसंख्यक आबादी वाले शख्स को थानेदार तैनात कर उस इलाके की पुलिसिंग आसान बनाने की बातें कर रहे हैं। यदि एसएसपी यह सोच रहे हैं तो जाहिर है कि उनके ऊपर के अधिकारी भी जिले में या रेंज में अफसर तैनात करते वक्त जातिगत समीकरणों का ख्याल रखते होंगे। आपको लगता है कि यह बेहतर पुलिसिंग के लिए जरूरी है? ...