जाति से पुलिसिंग???
.......आपको
जानकर हैरानी होगी कि अपने इलाकों के थानेदार तय करने में हम पहले वहां के
जाति-समीकरण भी देखते हैं! इसलिए नहीं कि हम अनिवार्यतः जाति-प्रियता में
श्रद्धा रखते हैं। इससे उस इलाके की पुलिसिंग आसान हो जाती है। कैसे हो
जाती है, यह कभी उस इलाके के थानेदार से एक पत्रकार के तौर पर नहीं, आम
आदमी बनकर पूछिएगा.......
धर्मेंद्र सिंह, एसएसपी, नोएडा
यह कहना है नोएडा के नए एसएसपी धर्मेंद्र सिंह का। उन्होंने टीवी पत्रकार रवीश के पत्र के जवाब में जो लंबा जवाब लिखा है यह उसका एक अंश है। जाति के आधार पर थानेदार तय करने से इलाके की पुलिसिंग कैसे आसान हो जाती है, यह मेरी समझ से परे है। क्या थानेदार बहुसंख्यक जाति का होना चाहिए या सबसे कम आबादी वाली जाति का।
मुझे लगता है कि एसएसपी बहुसंख्यक आबादी वाले शख्स को थानेदार तैनात कर उस इलाके की पुलिसिंग आसान बनाने की बातें कर रहे हैं। यदि एसएसपी यह सोच रहे हैं तो जाहिर है कि उनके ऊपर के अधिकारी भी जिले में या रेंज में अफसर तैनात करते वक्त जातिगत समीकरणों का ख्याल रखते होंगे। आपको लगता है कि यह बेहतर पुलिसिंग के लिए जरूरी है? पुलिसिंग ही क्यों प्रशासन में भी इस आधार पर तैनाती होनी चाहिए क्या?
मैं कहता हूं अगर विधाता नर को मुट्ठी में भरकर
कहीं छींट दे ब्रह्मलोक से ही नीचे भूमंडल पर
तो भी विविध जातियों में ही मनुज यहां आ सकता है
नीचे हैं क्यारियां बनीं तो बीज कहां जा सकता है
-दिनकर, रश्मिरथी में
जाति भारतीय समाज की सच्चाई है लेकिन उसे इस तरह मजबूरी बनाना कहां तक सर्वाधिकार संपन्न अफसरों की मजबूरी है, यह समझना मुश्किल है। चलिए, एसएसपी की इसी थ्योरी पर चलें तो नोएडा जिले में जाति की संख्या के लिहाज से यादव न तो सबसे बड़ी आबादी वाले हैं और न ही सबसे कम जनसंख्या वाले। यादवों से अधिक गुर्जरों, ठाकुरों और ब्राह्मणों की आबादी जिले में है। फिर इलाके में एसएसपी यादव, सिटी एसपी यादव, एसपी देहात यादव, पांच थाना इंचार्ज यादव किस आधार पर तैनात किए गए हैं। क्या गुर्जर एसएसपी तैनात कर देने से यहां लॉ एंड ऑर्डर की स्थित कंट्रोल में आ जाएगी। अगर एसएसपी का यह फॉर्म्युला सही है तो उन्हें उसे सरकार के पास पेश करना चाहिए ताकि यूपी का यह शो विंडो क्राइम मुक्त हो सके।
एसएसपी ने टीवी पत्रकार को लिखे जवाब में यह सलाह भी दी है कि जातिगत आधार पर थानेदार तैनात करने से पुलिसिंग कैसे आसान हो जाती है यह उस इलाके के थानेदार से पत्रकार बनकर नहीं, बल्कि आम आदमी बनकर पूछिए। क्या हास्यास्पद बात है। थानेदार आम आदमी की शिकायत तो सुनते नहीं, उनके सवालों के जवाब देंगे। बड़े अफसर शायद अभी भी इस हकीकत को नहीं पचा पाते कि कई मामलों में एफआईआर या तो मीडिया के दबाव में दर्ज होती है या कोर्ट के आदेश पर। देहात में दरोगा कितना पब्लिक फ्रेंडली होता है इसके लिए किसी की लिखी पंक्तियां नीचे कोट कर रहा हूं-
जरा पाने की कोशिश में बहुत कुछ छूट जाता है
नदी का साथ देता हूं, समंदर रूठ जाता है
गनीमत है नगर वालो, लुटेरों से लुटे हो तुम
हमें तो गांव में अक्सर दरोगा लूट जाता है।
रही बात जातिगत आधार पर तैनाती की तो जब कांग्रेस की चलती थी तब कांग्रेस शासित राज्यो में सारे महत्वपूर्ण पोस्ट ब्राह्मणों के लिए रिजर्व रहती थी। डीएम से लेकर चीफ सेक्रेटरी तक। दूसरी जाति का अफसर काबिल होते हुए भी सचिवालय में पड़ा रहता था। 1990 में जब बिहार में लालू यादव मुख्यमंत्री बने तब वहां के चीफ सेक्रेटरी अरुण पाठक थे। यह कई साल की पीड़ा ही थी कि लालू यादव उनका मजाक उड़ाने के लिए भरी मीटिंग में अरुण पाठक को बड़ा बाबू कहते थे और यह भी कहते थे कि बड़ा बाबू, जरा मेरी चुनौटिया (जिसमें खैनी और चूना रखते हैं) तो लाइएगा।
क्या जाति के आधार पर सारे महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती सपा सरकार नहीं कर रही है? क्या सपा कांग्रेस के नक्शे कदम पर नहीं चल रही? क्या जाति की मलाई काट रहे अफसर इस बात को नहीं जानते और क्या वे स्ट्रैटिजी के तहत जातिगत आधार पर अफसरों की तैनाती अपनी मजबूरी नहीं बता रहे?
धर्मेंद्र सिंह, एसएसपी, नोएडा
यह कहना है नोएडा के नए एसएसपी धर्मेंद्र सिंह का। उन्होंने टीवी पत्रकार रवीश के पत्र के जवाब में जो लंबा जवाब लिखा है यह उसका एक अंश है। जाति के आधार पर थानेदार तय करने से इलाके की पुलिसिंग कैसे आसान हो जाती है, यह मेरी समझ से परे है। क्या थानेदार बहुसंख्यक जाति का होना चाहिए या सबसे कम आबादी वाली जाति का।
मुझे लगता है कि एसएसपी बहुसंख्यक आबादी वाले शख्स को थानेदार तैनात कर उस इलाके की पुलिसिंग आसान बनाने की बातें कर रहे हैं। यदि एसएसपी यह सोच रहे हैं तो जाहिर है कि उनके ऊपर के अधिकारी भी जिले में या रेंज में अफसर तैनात करते वक्त जातिगत समीकरणों का ख्याल रखते होंगे। आपको लगता है कि यह बेहतर पुलिसिंग के लिए जरूरी है? पुलिसिंग ही क्यों प्रशासन में भी इस आधार पर तैनाती होनी चाहिए क्या?
मैं कहता हूं अगर विधाता नर को मुट्ठी में भरकर
कहीं छींट दे ब्रह्मलोक से ही नीचे भूमंडल पर
तो भी विविध जातियों में ही मनुज यहां आ सकता है
नीचे हैं क्यारियां बनीं तो बीज कहां जा सकता है
-दिनकर, रश्मिरथी में
जाति भारतीय समाज की सच्चाई है लेकिन उसे इस तरह मजबूरी बनाना कहां तक सर्वाधिकार संपन्न अफसरों की मजबूरी है, यह समझना मुश्किल है। चलिए, एसएसपी की इसी थ्योरी पर चलें तो नोएडा जिले में जाति की संख्या के लिहाज से यादव न तो सबसे बड़ी आबादी वाले हैं और न ही सबसे कम जनसंख्या वाले। यादवों से अधिक गुर्जरों, ठाकुरों और ब्राह्मणों की आबादी जिले में है। फिर इलाके में एसएसपी यादव, सिटी एसपी यादव, एसपी देहात यादव, पांच थाना इंचार्ज यादव किस आधार पर तैनात किए गए हैं। क्या गुर्जर एसएसपी तैनात कर देने से यहां लॉ एंड ऑर्डर की स्थित कंट्रोल में आ जाएगी। अगर एसएसपी का यह फॉर्म्युला सही है तो उन्हें उसे सरकार के पास पेश करना चाहिए ताकि यूपी का यह शो विंडो क्राइम मुक्त हो सके।
एसएसपी ने टीवी पत्रकार को लिखे जवाब में यह सलाह भी दी है कि जातिगत आधार पर थानेदार तैनात करने से पुलिसिंग कैसे आसान हो जाती है यह उस इलाके के थानेदार से पत्रकार बनकर नहीं, बल्कि आम आदमी बनकर पूछिए। क्या हास्यास्पद बात है। थानेदार आम आदमी की शिकायत तो सुनते नहीं, उनके सवालों के जवाब देंगे। बड़े अफसर शायद अभी भी इस हकीकत को नहीं पचा पाते कि कई मामलों में एफआईआर या तो मीडिया के दबाव में दर्ज होती है या कोर्ट के आदेश पर। देहात में दरोगा कितना पब्लिक फ्रेंडली होता है इसके लिए किसी की लिखी पंक्तियां नीचे कोट कर रहा हूं-
जरा पाने की कोशिश में बहुत कुछ छूट जाता है
नदी का साथ देता हूं, समंदर रूठ जाता है
गनीमत है नगर वालो, लुटेरों से लुटे हो तुम
हमें तो गांव में अक्सर दरोगा लूट जाता है।
रही बात जातिगत आधार पर तैनाती की तो जब कांग्रेस की चलती थी तब कांग्रेस शासित राज्यो में सारे महत्वपूर्ण पोस्ट ब्राह्मणों के लिए रिजर्व रहती थी। डीएम से लेकर चीफ सेक्रेटरी तक। दूसरी जाति का अफसर काबिल होते हुए भी सचिवालय में पड़ा रहता था। 1990 में जब बिहार में लालू यादव मुख्यमंत्री बने तब वहां के चीफ सेक्रेटरी अरुण पाठक थे। यह कई साल की पीड़ा ही थी कि लालू यादव उनका मजाक उड़ाने के लिए भरी मीटिंग में अरुण पाठक को बड़ा बाबू कहते थे और यह भी कहते थे कि बड़ा बाबू, जरा मेरी चुनौटिया (जिसमें खैनी और चूना रखते हैं) तो लाइएगा।
क्या जाति के आधार पर सारे महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती सपा सरकार नहीं कर रही है? क्या सपा कांग्रेस के नक्शे कदम पर नहीं चल रही? क्या जाति की मलाई काट रहे अफसर इस बात को नहीं जानते और क्या वे स्ट्रैटिजी के तहत जातिगत आधार पर अफसरों की तैनाती अपनी मजबूरी नहीं बता रहे?
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