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Showing posts from March, 2018

निमिया के डाढ़ मइया...

पिछली सदी की बात है। आज ही की रात थी यानी अष्टमी की। भोजपुरी भाषी इलाके में घर की सबसे बुजुर्ग महिला ' निमिया के डाढ़ मइया लावेली झुलुहवा के झूली झूली ना, मइया गावेली गितिया के झूली झूली ना' गाते गाते झूल रही थी। मइया से ज्यादा शायद नींद का पहरा था। आधी रात हो चुकी थी और अष्टमी की परम्परा के मुताबिक घर का मुख्य दरवाजा खुला था। महिला को तभी आंगन में कोई आकृति दिखी। गीत, 'झूलत झूलत मइया के लगली पियासिया कि चली भइली ना, मलहोरिया दुअरिया कि चली भइली ना' तक पहुंच चुका था। महिला विभोर हो गई। साक्षात मां आंगन में। घर के पुरूष बाहर दरवाजे पर सो रहे थे। सो बहू को जगाया, पोती को भो। सबको मां से आशीर्वाद दिलवाया। गीत वहां तक पहुंच चुका था जब मइया पानी पीने के बाद तृप्त होकर माली की पत्नी से कहती हैं, जैसे तू हमके जुड़ववलु ए मालिन ओइसे, तोहार पतोहिया जुड़ाव के ओइसे। फिर वह आकृति गायब हो गई। महिला की नींद टूट चुकी थी और वह रोमांचित होकर सबको यह घटना सुनने के लिए व्याकुल थी। सुबह डगर बजने के साथ पूजा समाप्त हुई। लेकिन यह क्या, आंगन में रखे सारे बर्तन गायब थे। यह बात साफ हो चुकी थी रात...

जय श्री राम, हो गया काम

इस अंजाम का आगाज़ उसी दिन हो गया था, जब गोरखपुर के वॉर्ड नंबर 68 में बीजेपी की माया त्रिपाठी निर्दलीय नादिरा खातून के हाथों हार गई थीं। गोरखपुर समेत प्रदेश के 12 नगर निगमों में भल...

सुतल पिया के जगावे हो रामा, तोर मीठी बोलिया

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जब बधार (खेत) में सरसों और तीसी नई उमंग से गलबहियां करने लगती हैं, जब नीम और पीपल में नए पत्ते आ जाते हैं, जब आम नया मौर पहन लेता है, जब महुए की खुशबू नई मादकता फैलाने लगती है, जब गेहूं और कान की बालियां नए अंदाज में मचलने लगती हैं, जब चना मानों नए हिप्पी कट हेयर स्टाइल में बिंदास झूमने लगता है, जब अनाज के रूप में घर में नई सुख-समृद्धि आने लगती है और परदेसी प्रियतम की याद नए सिरे से सताने लगती है, तब शब्द वेदना में डूबकर फूट पड़ते हैं चैता के रूप में, 'ए रामा पिया परदेसवा' फणीश्वर नाथ रेणु ने अपने चर्चित उपन्यास 'मैला आंचल' में एक चैती का जिक्र किया है, सुतल पिया के जगावे हो रामा तोर मीठी बोलिया'। इसका मतलब यह कि नायक सो रहा है। सुबह हो गई है और कोयल की मीठी तान सुनाई दे रही है। नायिका कोयल पर लानत भेजती है कि उस कूक से उसके पति की नींद खुल जाएगी। फिर? फिर वह उससे अलग होकर अनाज काटने खेतों में चला जाएगा। नायिका यही नहीं चाहती। कुछ लोग यह सवाल उठा सकते हैं कि मुंह अंधेरे खेतों में जाने की क्या जरूरत है? थोड़ा रुककर भी तो जा सकता है। जो लोग दरअसल खेती के बारे में...

तुम्हारे पांव के नीचे जमीन नहीं

बुझ चुका है तेरे हुस्न का हुक्का, ये हमारी वफ़ा है कि गुड़गुड़ाये जाते हैं लेकिन सवाल है कि कब तक? बंगाल और त्रिपुरा में हुक्का बुझ चुका है। चि, लाम और मीन यानी चिलम के सारे पार्ट ...