तुम्हारे पांव के नीचे जमीन नहीं

बुझ चुका है तेरे हुस्न का हुक्का,
ये हमारी वफ़ा है कि गुड़गुड़ाये जाते हैं

लेकिन सवाल है कि कब तक? बंगाल और त्रिपुरा में हुक्का बुझ चुका है। चि, लाम और मीन यानी चिलम के सारे पार्ट खराब हो गए हैं। सीने की आग और आंखों का पानी कुछ नहीं बचा। अब तो गुड़गुड़ाहट की आवाज़ भी बुलंद नहीं रही। लाल किले पर लाल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान, अब महज़ जोक है।
खेत-खलिहानों से तुम्हारी विदाई कब की हो चुकी है। ईंट-भठ्ठों की तपिश से तुम भागते हो। रोजगार के जितने साधनों पर वश चला, उन्हें तुमने बन्द करवा दिया। खेतिहर मज़दूरों और छोटी जोत के किसानों को तुमने दिवास्वप्न दिखाया और घर से हज़ार किमी दूर ले जाकर फैक्टरी का लेबर बना दिया। इतने से मन नहीं भरा तो फैक्टरी भी बन्द करवा दी, क्योंकि रोजगार दे रहा सेठ शोषक था। उससे पहले खेतों के मालिक सामन्त थे। इस बीच तुम्हारे बच्चे बढ़िया स्कूलों में पढ़ते रहे और दूसरे बच्चों को तुम लेनिन और स्टालिन रटवाते रहे।
1 मई का सेलिब्रेशन तुम्हारे लिए रस्मअदायगी है। मज़दूर जब यूनियनों में अपने पीएफ और ग्रेच्युटी का मसला उठाता है तो तुम पहले पार्टी के सिद्धान्तों पर बहस करना चाहते हो। वो अपना पैसा चाहता है क्योंकि उसकी बेटी की बरात आने वाली है और तुम इस पर बात करने के बजाय पार्टी को पावर में लाने के उपायों पर बात करने लगते हो।

मुझे नहीं पता कि दुष्यंत कुमार ने यह शेर क्यों लिखा था कि
तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं।
क्या तुम्हे पता है कॉमरेड?

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