नवभारत टाइम्स की लीड स्टोरी में इस्तेमाल यह तस्वीर काफी कुछ कहती है 1989 का आम चुनाव था। राजीव सरकार में रक्षा मंत्री रह चुके वीपी सिंह उनके सामने विपक्ष का संयुक्त चेहरा बने हुए थे। वह हर प्रेस कॉन्फ्रेंस और पब्लिक मीटिंग में जेब से एक डायरी निकाल कर कहते कि उसमें बोफोर्स मामले में दलाली लेने वाले और स्विस खातों में जिनके लिए पैसा जमा हुआ, उनके खातों के नंबर हैं। सत्ता में आने के दस दिनों के अंदर सभी दलालों के नाम सार्वजनिक कर दिए जाएंगे। वीपी सिंह का राष्ट्रीय मोर्चा सत्ता में आ गया। करीब डेढ़ साल हो गए और किसी दलाल का नाम वीपी सिंह नहीं बता सके तो मंडल कमिशन की सिफारिशें लेकर आ गए। पिछड़ों के लिए 27 फीसदी आरक्षण का तोहफा। हालांकि उसके बाद वीपी सिंह भारतीय राजनीति से करीब-करीब लुप्तप्राय हो गए। 2014 का आम चुनाव आया। करप्शन के आरोपों से घिर चुकी दस साल पुरानी मनमोहन सरकार के सामने नरेंद्र मोदी साक्षात हरिशचंद्र बनकर दहाड़ रहे थे। सत्ता में आने के बाद हर भारतवंशी के खाते में 15 लाख रुपये आने और हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देने के दावे किए जा रहे थे। सरकार ...