Posts

Showing posts from June, 2020

दो जून की रोटी

2 जून, महज एक तारीख है, जो हर साल आती है। लेकिन वही दो जून शब्द होकर और मुहावरा बनकर जब रोटी के साथ चुपड़ता है, तो उससे रोजाना का सम्बन्ध हो जाता है। और समाज के बड़े वर्ग की गतिविधियां इसी दो जून की रोटी के इर्द-गिर्द चक्कर काटती हैं। रोटी जो 1857 में क्रांति का संदेश फैलाती थी, वही कभी-कभी पलायन और इससे ऊपजे आंदोलन का भी प्रतीक बन जाती है। आज फिर तारीख के लिहाज से 2 जून है। लेकिन रोटी के लिहाज से ऐसा 2 जून इससे पहले शायद ही आया हो। जिनके पूर्वज सम्मान से दो जून की रोटी की तलाश में अपना गांव-घर छोड़ आये थे, उनके वंशज इसकी चिंता छोड़कर रिवर्स पलायन कर रहे हैं। तारीखें इनकी पदयात्रा की भी गवाह हैं और एक जून से जो अनलॉक हुआ, उसके बाद कुछ सुविधाजनक सफर का भी। एक जून को चलीं कई ट्रेनें आज यानी 2 जून को अपने गंतव्य तक पहुंचेंगी तो वह ट्रेन उन महिलाओं को बैरन नहीं लगेगी जो नौकरी की बेचारगी में उनके प्रियतम को उनसे दूर ले जाती हैं। 2 जून को इन रेलगाड़ियों की यह पहचान बदल जाएगी। लेकिन अहम सवाल यह है कि गांव में दो जून की रोटी का इंतजाम कैसे होगा? राहत कैम्प और क़वारन्टीन सेंटर के बाद क्या?...