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कृत्रिम जलाशयों का त्योहार नहीं है छठ

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 दिल्ली-नोएडा में बहने वाली यमुना नदी का यह हाल हो जाता है। इसमें कैसे दे सकते हैं अर्घ्य सदियों पहले जब हमारे पूर्वजों ने छठ मनाना शुरू किया होगा, तो उसका सीधा संबंध प्रकृति के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करने से रहा होगा। सूर्य, जिनसे ऊष्मा और ऊर्जा मिलती है। जलाशय, जिनसे सभी जीवों को पीने का पानी मिलता है। वनस्पतियां, जिनसे भूख शांत होती थी और शरीर को जरूरी पोषक तत्व मिलते थे। पूजा में उन्हीं सभी चीजों का इस्तेमाल होता था, जो हमें प्रकृति से मिलते हैं। पीतल का सूप सम्भवतः पिछली सदी में उपभोक्तावाद बढ़ने के साथ आया।  अब छठ का प्रसार बढ़ता जा रहा है। अमेरिका, यूरोप तक में इसकी धमक है, लेकिन हाल के बरसों में दिल्ली-एनसीआर में छठ के दिन सूर्यदेव का दर्शन नहीं होता। सूर्य किसी जलद पटल में नहीं, बल्कि प्रदूषण की चादर में छुप रहे हैं और यह हालात मानव निर्मित है। हुकूमतें अपने दल शासित प्रदेशों को छोड़कर दूसरे राज्यों से पराली का धुआं आने की बयानबाजी को प्रमुखता से रही हैं। अफसर कार्रवाई के नाम पर चालान काटने तक सिमटे हैं। लोग स्टेटस मेंटेन करने में कार से बाहर निकलना छोड़ नहीं रहे। सूर्...