आज कथा इतनी भयो

मसक समान रूप कपि धरहिं, लंकेउ चले सुमिरि नरहरिहिं।
अर्थात लंका के लिए प्रस्थान करने से पहले हनुमान जी ने मच्छर का रूप धारण कर लिया। अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों को देने की क्षमता रखने वाले हनुमान जी ने मच्छर का ही रूप क्यों बनाया? कहा जाता है कि मच्छर वातावरण के अनुरूप खुद को सब जीवों में तेजी से ढालता है। रास्ते की चुनौतियों औऱ जलवायु से अनभिज्ञ हनुमान जी को यह सुरक्षित जान पड़ा था।
अब उसी हनुमान जी की जाति तय की जा रही है। जाति तय करने से पहले बजरंगी का मानवीकरण होना चाहिए था, जो नहीं हुआ। मनुष्य के अलावा किसी प्राणी की न तो कोई जाति होती है, न धर्म न ही कोई रिश्ता। राम ने जब बाली को तीर मारकर गिरा दिया और अपने कृत्य के समर्थन में अनुज वधू, भगिनी, सुत नारी का तर्क दिया, तब सम्भवतः उस क्षण बाली ने यही कहा होगा कि मानव समाज के रिश्तों को आप बंदरों पर कैसे लागू कर सकते हैं? निरुत्तर तुलसी इसे छोड़ कर, अचल करो तन राखहूँ प्राना, वाली चौपाई लिख दिए थे।
जबसे जाति विहीन योगी ने हनुमान जी को दलित बताया, तबसे इस पर रोज़ नई थ्योरी आ रही हैं। उनके एमएलसी बुक्कल नवाब सुलेमान और रहमान की तर्ज़ पर हनुमान को मुसलमान बता रहे हैं। कोई जाट तो कोई ठाकुर बता रहा है। एक फेसबुक यूज़र ने उन्हें इसलिए ठाकुर बताया है कि दूसरे की बीवी, दूसरा किडनैपर और ये न सिर्फ उनके झगड़े में कूदे, बल्कि रंगबाजी दिखाने में अपनी पूंछ जलवा बैठे। कमोबेश यही तर्क उनके जाट होने के समर्थन में दिए जाते हैं। एक सज्जन का दावा है कि हनुमान जी लाला यानी कायस्थ थे। वह कैसे, तो उनका तर्क एक भजन पर आधारित है कि आरती की जय हनुमान लला की। कोई कांधे मूज़ जनेऊ साजे के आधार पर ब्राह्मण बता रहा है। राजेन्द्र यादव ने कभी उन्हें पहला आतंकवादी लिखा था, जिन्होंने लंका में उपद्रव मचाया था। अब up के एक मंत्री चेतन चौहान कह रहे हैं कि हनुमान जी कुश्ती लड़ते थे। चौहान साहब, हनुमान की कुश्ती का जिक्र कहां आया है, यह भी तो बताइए। यदि आपको उन्हें खिलाड़ी ही साबित करना था तो उन्हें लॉन्ग जम्प का प्लेयर बता देते। आखिर उन्होंने एक छलांग में समुद्र लांघ दिया था।
यह बहस अभी लम्बी खिंचेगी। बहरहाल, आज कथा इतनी भयो, सुनो बीर हनुमान

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