अपना भी एक कॉलेज था
अपना कॉलेज भी अद्भुत था। नाम महर्षि विश्वामित्र महाविद्यालय और पता चरित्रवन बक्सर। हिन्दू रीति से होने वाली शादियों में एक मंत्र आता है जिसमें कन्या के सुहाग और दांपत्य जीवन के चैत्ररथ वन की तरह हरा-भरा रहने की कामना की जाती है। चरित्रवन इसी चैत्ररथ वन का अपभ्रंश माना जाता है। किस्सा यह भी है कि इसी वन में विश्वामित्र ने राम-लक्षमण को यज्ञ रक्षा के लिए रखा था , जहां राम ने ताड़का का वध किया था। चूँकि यह एक पुण्य क्षेत्र था, लिहाज़ा स्त्री हत्या के प्रायश्चित स्वरुप राम को यहां गंगा किनारे रामेश्वरनाथ की स्थापना कर पूजा करनी पड़ी थी। रामरेखा घाट पर यह मंदिर आज भी विद्यमान है।
पहले बक्सर का मुख्तसर परिचय
अब बात कॉलेज की
एमवी कॉलेज का पिछला गेट जंहा खुलता है वहां रानी घाट था। वहां एक रानी का कुआँ है जिसके बारे में कहा जाता है कि रानी इस सुरंग के रास्ते गंगा स्नान करने आती थीं। 1992 की बात है। नहाने तो यहाँ कोई नहीं आता था हम ही लोग यहाँ बैठे रहते थे। कुछ दोस्त तब की सुपरहिट फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ की friend वाली कैप पहन कर कबूतर जा-जा कहने की प्रैक्टिस करते रहते थे। उनके कबूतर तो कहीं नहीं गए लेकिन उनकी कबूतरियां किसी और देस में उड़कर चली गईं। ऊपर कई कमरे बने थे जिनका इस्तेमाल औरते कपड़े चेंज करने के लिए करती होंगी, लेकिन तब तक हेरोइन पीने वालों ने उसे मुफीद ठिकाना बना लिया था।
चरित्रवन की संत परंपरा
कहा जाता है कि सतयुग में सिद्धाश्रम में 88 हज़ार ऋषि तपस्या करते थे। कलियुग में यह संख्या उंगलियों पर गिनने लायक रह गई थी। फिर भी चरित्रवन से संत परंपरा खत्म नहीं हुई थी। 1950 के दशक का उत्तरार्ध था। बिहार में चुनी हुई सरकार थी। जिला प्रशासन था। रंगकर्मी थे और भी कई लोग थे लेकिन बक्सर में हायर एजुकेशन का सेंटर खुले यह ख्याल किसी को नहीं था। यह विचार आया वहां रहने वाले ऋषि खाकी बाबा को। खाकी बाबा ने डुमरांव महाराजा से दान में जमीन ली और विश्वामित्र मुनि के नाम पर यह एमवी कॉलेज खुला। डुमराँव बक्सर जिले में वो जगह है जहाँ मशहूर शहनाई वादक विस्मिल्लाह खान का न सिर्फ जनम हुआ था बल्कि शुरू के 9 साल वे वहां रहे भी थे। खाकी बाबा ने इतना ही नहीं किया बल्कि उन्होंने यह इंतजाम भी किया क़ि एमवी कॉलेज में लड़कियों की ट्यूशन फीस नहीं लगेगी। नारी उत्थान के नाम पर दुकानदारी करनेवाले इससे कुछ सीख सकते हैं।
कुछ और बातें
अब बात किंवदंतियों की।
पहला मानस हाल आज तक नहीं भरा भले ही उसमें हिस्ट्री की क्लास हुई हो।
दूसरा साइंस के एक प्रोफेसर पीने के इतने शौकीन हैं कि लैब में राखी स्प्रिट भी पी जाते हैं।
तीसरा यह कि प्रिंसिपल की चेयर के पास दीवार में एक छेद है। यह छेद एक गोली का निशान है जिसे किसी स्टूडेंट ने तत्कालीन प्रिंसिपल पर चलाई थी।
पहला मानस हाल आज तक नहीं भरा भले ही उसमें हिस्ट्री की क्लास हुई हो।
दूसरा साइंस के एक प्रोफेसर पीने के इतने शौकीन हैं कि लैब में राखी स्प्रिट भी पी जाते हैं।
तीसरा यह कि प्रिंसिपल की चेयर के पास दीवार में एक छेद है। यह छेद एक गोली का निशान है जिसे किसी स्टूडेंट ने तत्कालीन प्रिंसिपल पर चलाई थी।
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