धर्म ही पूछ लो सबका

जब आतंकियों का धर्म नहीं होता तो फिर इसके धर्म वाले पॉइंट को इतना क्यों उछाला जा रहा है? क्या इसके पहले किसी आतंकी का धर्म बताया जाता था। तो क्या यह मान लिया गया था कि हिन्दू धर्म में कोई आतंकी हो ही नहीं सकता? हत्या गलत है और धार्मिक पहचान के आधार पर हत्या तो महापाप है।
खबरें यह भी हैं कि वेस्टर्न यूपी का संदीप नाम का यह शख्स 3 साल पहले धर्मांतरण कर इस्लाम अपना चुका था और उसने अपना नाम आदिल रख लिया था। तो धर्मांतरण के बाद उसकी पुरानी धार्मिक पहचान क्यों नहीं खत्म हुई? सिर्फ इस थ्योरी को सपोर्ट करने के लिये कि हिन्दू भी आतंकी हो सकता है।

यही हालत जुनैद और इख़लाक़ के मामले में है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 22 जून को गाज़ियाबाद मथुरा शटल में मारे गए जुनैद के पूर्वज वशिष्ठ गोत्र के ब्राह्मण थे और फरीदाबाद के बघौला गांव के थे। जुनैद के एक पूर्वज ने इस्लाम अपना लिया और वे लोग फरीदाबाद के खन्दावली गांव में रहने लगे थे। जब जुनैद की हत्या हुई तो इसे एक मुस्लिम के मारे जाने के तौर पर बताया गया। क्या सिर्फ इसलिए कि इस तरह उस सरकार के विरुद्ध घेराबंदी की गई, जिसे कुछ लोग पसंद नहीं करते।

अब बात इख़लाक़ की। 28 सितम्बर 2015 को बीफ के बवाल में ग्रेटर नोएडा के बिसाहड़ा गांव में इख़लाक़ को मार डाला गया था। इसे भी अल्पसंख्यको पर हमला माना गया। इख़लाक़ के पूर्वज सिसौदिया गोत्र के ठाकुर थे। इस घटना के बाद जब गांव में लोग जुटे तो दोनों पक्षों ने एक ही परिवार का होने की तस्दीक की थी। इनमें इखलाक के भाई जान मोहम्मद भी थे। कहा गया कि मुगलकाल में धर्मांतरण की प्रक्रिया हुई थी।
पुरानी पहचान क्यो?
धर्मांतरण चाहे 3 साल पहले हो या 300 साल, इसके बाद किसी को उसकी नई धार्मिक पहचान मिल जाती है। फिर पुराने धर्म से उसका वास्ता नहीं रहता। लेकिन अपनी सुविधा के लिए या महज़ अपनी थ्योरी को सपोर्ट करने के लिए इसे मरोड़ना कहां तक जायज़ है?
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