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Showing posts from February, 2018

कैसी बरात सजाई है जटाधारी ने!

शंकर और राम, इन दोनों की बरात कई मायने में अलग थी। राम की बरात में दूल्हा नहीं था। न घुड़चढ़ी हुई थी न परिछावन। दूल्हा जनकपुर नें बरातियों को मिला था। मानस में लिखा है, रामहिं दे...

मेले के झरोखे से

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2018 हम खुदा के कभी काइल न थे उनको देखा तो खुदा याद आया गाड़ियां अपनी समझ में कम आती हैं। और उसके अभिजात्य फीचर्स तो सुनकर बोर हो जाता हूँ। डेढ़ इंच ज्यादा गहरी डिक्की, 2 सेंटीमीटर ज्यादा पुशबैक, पौन इंच और हैवी स्टीयरिंग, टायर की ग्रिप अधिक, समझ में नहीं आती। फिर भी ऑटो एक्सपो में चला जाता हूँ। वहां सुकून मिलता है कि मैं अपनी प्रजाति का इकलौता प्राणी नहीं हूं। लेकिन जब हार्ले डेविडसन की टैक्सी को देख तो लगा, गुरु, यह तो कुछ पहचान वाला मामला बन रहा है। 1903 की इस कम्पनी ने 1942 में यह वाहन बनाया था। थोड़ा जोर डालने पर और याद आया, अरे यह तो फटफट है, जो 90 के दशक तक पुरानी दिल्ली में चलता था, फटफट की आवाज़ करते हुए। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन और चांदनी चौक इलाके में जिधर से फटफट गुजरता था, लोगों की आंखों में आंसू आ जाते थे। किसी प्यार की वजह से नही, उससे निकलने वाले धुएं की वजह से। ये वाहन यमुना पारकर गांधीनगर तक जाते थे। फव्वारा चौक से कनॉट प्लेस स्थित रिगल सिनेमा तक भी जाते थे  या वाहन और सीपी जानेवालों में इनका खासा क्रेज था। यह भी कहा जाता था कि कुछ लोगों ने बुले...