कैसी बरात सजाई है जटाधारी ने!

शंकर और राम, इन दोनों की बरात कई मायने में अलग थी। राम की बरात में दूल्हा नहीं था। न घुड़चढ़ी हुई थी न परिछावन। दूल्हा जनकपुर नें बरातियों को मिला था। मानस में लिखा है, रामहिं देखी बरात जुड़ानी, प्रीत के रीत न जात बखानी।
भूतभावन शिव की बरात में कोई समधी नहीं था। दूल्हा ही बरात मालिक था। और बरात भी कैसी, जिसकी उपमा आज भी दी जाती है। सुंदर, गौरांग, चहकते, महकते देवी-देवता तो भांति- भांति के दिव्यांग और कुरूप भूत, प्रेत, मलेच्छ भी बराती थे। मानस में लिखा है, कोउ मुख हीन विपुल मुख काहु, बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहु। यानी कोई सिर्फ धड़ था तो कोई सिर्फ सिर था। किसी बराती के हाथ-पैर नहीं थे तो कोई सिर्फ हाथ या पैर ही आया था। परस्पर विरोधी गुणों वाले बरातियों को कन्ट्रोल करने का जिम्मा भी उनपर था, जिनको लोग भोलेनाथ कहते हैं।
राम की मां थीं लेकिन उन्होंने बेटे को दूल्हे के रूप में तैयार नहीं किया था। शंकर का तो कोई था ही नहीं। लिहाज़ा उनके अपने गणों को जो अच्छा लगा, उसके मुताबिक तैयार कर दिया। उबटन की जगह चिता की राख, कपड़े की जगह मृगछाला, बैल की सवारी, गले में सांप, मौर की जगह चौथ का चांद। कहा जाता है कि बरात जिधर से गुजरती थी, डर के मारे घरों के दरवाजे बंद हो जाते थे। गो कि बरात में देवता भी थे, लेकिन वे 'हमें क्या कहना' की अभिजात्य मानसिकता से त्रस्त थे।
बरात हिमाचल राजा के दरवाजे पर पहुंची और कहते हैं कि दूल्हे का रूप देखकर उनकी पत्नी मैना बेहोश हो गई थीं। औरतों ने शादी में अहम भूमिका निभानेवाले नारद को कोसा था। खैर बाद में शादी हो गई थी।
इस शादी में कई व्यवधान आये लेकिन यह दुनिया की सफलतम शादियों में से एक थी। राम की शादी में कोई दिक्कत नहीं आई थी लेकिन उसे बेहतर विवाह नहीं माना जाता।
लेकिन भगवान शंकर ने बरात में अपना जो वेश बनाया वह कई सन्देश दे गया। राम कथावाचक मोरारी बापू कहते हैं कि भगवान शंकर ने चिता की राख लपेटकर यह संदेश दिया कि शरीर को भस्मीभूत हो जाना है, इसलिए सिर्फ शरीर केंद्रित मत हो जाओ। बैल को वे पुरुषार्थ का प्रतीक मानते हैं और चारों पैरों को पुरुषार्थ के चार लक्षण यानी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। पार्वती की मां मैना भले ही शिव के गले की शोभा बढ़ा रहे सर्प को देखकर डर गई हों लेकिन सन्देश साफ था-तुम्हारा दामाद मौत को गले में डालकर रहता है, यानी उसे मृत्यु का खौफ नहीं। वह शिव है, कभी शव नहीं हो सकता। उसका हथियार त्रिशूल है, यानी वह जीवन के तीनों शूलों-दैहिक, दैविक और भौतिक का शमन कर सकता है। वह इतना महान है कि चौथ के कलंकित चांद को भी अपने सिर पर बिठा सकता है।
शिव की बरात में शामिल देवता ऊहापोह में थे कि हम कैसे भूतों के साथ चलें? मशहूर भोजपुरी लोकगायक धुरान (अब दिवंगत) अपने गीतों में कहते थे कि खुद ब्रह्मा जी को यह हिचकिचाहट हुई थी। तब शंकर ने साफ कहा था कि इन भूतों को भी मैंने आमंत्रित किया है। जिसे अपमान महसूस हो रहा हो वे थोड़ा अलग चले, ये मेरे गण हैं और मेरे साथ ही रहेंगे।
शंकर कभी नहीं हिचकिचाएं। लेकिन उनकी पूजा करनेवालों, आप किस संशय में रहते हैं। आप कभी एकमत क्यों नहीं हो पाते कि महाशिवरात्रि किस दिन मनाएंगे। आप देवताओं के प्रतिनिधि बने पुजरियों के झांसे में क्यों रहते हैं? आप अपने आराध्य की तरह बिंदास क्यों नहीं होते?

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