मेले के झरोखे से

2018

हम खुदा के कभी काइल न थे
उनको देखा तो खुदा याद आया


गाड़ियां अपनी समझ में कम आती हैं। और उसके अभिजात्य फीचर्स तो सुनकर बोर हो जाता हूँ। डेढ़ इंच ज्यादा गहरी डिक्की, 2 सेंटीमीटर ज्यादा पुशबैक, पौन इंच और हैवी स्टीयरिंग, टायर की ग्रिप अधिक, समझ में नहीं आती। फिर भी ऑटो एक्सपो में चला जाता हूँ। वहां सुकून मिलता है कि मैं अपनी प्रजाति का इकलौता प्राणी नहीं हूं।
लेकिन जब हार्ले डेविडसन की टैक्सी को देख तो लगा, गुरु, यह तो कुछ पहचान वाला मामला बन रहा है। 1903 की इस कम्पनी ने 1942 में यह वाहन बनाया था। थोड़ा जोर डालने पर और याद आया, अरे यह तो फटफट है, जो 90 के दशक तक पुरानी दिल्ली में चलता था, फटफट की आवाज़ करते हुए। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन और चांदनी चौक इलाके में जिधर से फटफट गुजरता था, लोगों की आंखों में आंसू आ जाते थे। किसी प्यार की वजह से नही, उससे निकलने वाले धुएं की वजह से। ये वाहन यमुना पारकर गांधीनगर तक जाते थे। फव्वारा चौक से कनॉट प्लेस स्थित रिगल सिनेमा तक भी जाते थे  या वाहन और सीपी जानेवालों में इनका खासा क्रेज था। यह भी कहा जाता था कि कुछ लोगों ने बुलेट का मॉडिफिकेशन कर यह वाहन तैयार किया था। अधिकतर सरदार इसके मालिक, ड्राइवर थे।
फिर पर्यावरण और सेहत को लेकर जागरूकता आई और परम्परागत फटफट बन्द हो गए। हालांकि नाम चलता रहा। बाद में महिंद्रा की जीप फटफट सेवा के नाम पर कई साल यमुनापार में चलीं। वह भी बन्द हुई और अब कई इलाकों में OMNI की वैन फटफट का नाम रोशन कर रही हैं।



2016 
जब ऑटो एक्सपो में दिखी थी बॉबी
ग्रेटर नोएडा में चल रहे ऑटो एक्सपो में कल अचानक बॉबी दिख गई। ग्राउंड फ्लोर पर। बॉबी, जो 70 के दशक में युवा दिलों की धड़कन हुआ करती थी। हर पैरंट्स यह चाहता था कि उसके लुड़के-लुड़की इस बैरन से दूर रहें। शायद बॉबी की संगत ही ‘हम-तुम एक कमरे में बंद हों और चाबी खो जाए’, वाली फीलिंग देने लगती थी, पैरंट्स ऐसा ही मानते थे। 80 का दशक खत्म होते-होते बॉबी गायब-सी हो गई। फिर भी कहीं न कहीं मचलती-ठुमकती-इठलाती दिख ही जाती थी।
वक्त बदला, सीसी और हॉर्सपावर का टेस्ट बदला और बॉबी की कई सौतन जवां दिलों की धड़कन बनने लगीं। लोगों ने और बाजार ने यह तो नहीं कहा कि‘ मैं तेरी सौतन लाऊंगा तुम देखती रहियो’, लेकिन हुआ था दरअसल ऐसा ही।
फिर बॉबी दिखनी ही बंद हो गई। लुड़का-लुड़की के हाथों में कोई और आने लगा। नई पीढ़ी को बॉबी के हुस्न और जलवे का तो शायद अंदाजा ही न हो।
बहरहाल, बॉबी दिखी। उसी स्टाइल से। उसी अदा से। लाइन में सबसे किनारे खड़ी थी। हालांकि उसके कद्रदान यह कह सकते हैं कि सबसे आगे थी। बॉबी ठसक से खड़ी थी पर खामोश थी। गालों से डिंपल गायब हो चुके थे और किसी ऋषि की तरह शांत थी और शायद यहीं कह रही थी कि तू मेरी सौतन लाया ‘मैं विंटेज हो जाऊंगी तुम देखते रहियो।’

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