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Showing posts from June, 2021

देव स्वतंत्र नहीं रहेंगे या मऊ में अरविंद (कमल) खिलाने की रणनीति

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अरविंद कुमार शर्मा या एके शर्मा। यह नाम थोड़ी देर पहले चर्चा में आया है। यूपी का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाए जाने के बाद। चर्चा की एक वजह यह भी है कि आईएएस अधिकारी रह चुके शर्मा को जिनके पास न संगठन चलाने का अनुभव है न जनाधार, उन्हें उस राज्य में संगठन में इतना जिम्मेदार ओहदा क्यों दे दिया गया, जहां अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। यह भी कहा जा रहा है कि कुछ दिनों से इनका नाम डिप्टी सीएम के लिए आगे किया जा रहा था, जिस पर अब विराम लग गया है। वैसे अरविंद शर्मा की राजनीति में एंट्री भी चौंकाने वाली थी। बीजेपी में शामिल होते ही एमएलसी कैंडिडेट घोषित कर दिए गए थे। गुजरात कैडर के इस पूर्व नौकरशाह को प्रधानमंत्री मोदी का करीबी माना जाता है। आज के बदलाव के कुछ कयास हैं। या तो विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण के दौरान प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र नहीं रहेंगे। टिकट वितरण में केंद्रीय नेतृत्व को जिस नाम पर ऑब्जेक्शन लगवाना होगा, वह अरविंद शर्मा के माध्यम से लगवाया जाएगा।  या यह कि अरविंद शर्मा को मऊ सदर से विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाया जाए, जहां से मुख्तार अंसारी 2017 में बसपा के टिकट पर ...

नाम में क्या रखा है? कन्फ्यूजन

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यह पुराना सवाल है कि नाम में क्या रखा है? सवाल यह भी है कि सरनेम में क्या रखा है? जाहिर है या तो पहचान क्लियर या कन्फ्यूजन। दो दिन पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गए जितिन प्रसाद के मामले में भी यही हुआ। जितिन की कहानी यही छोड़कर हम चलते हैं यूपी के शो विंडो नोएडा में और वहां इसका एक और तमाशा देखते हैं। 2014 में लोकसभा का चुनाव हुआ था। 2012 में नोएडा विधानसभा सीट से विजयी डॉ. महेश शर्मा के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद यह सीट खाली हुई थी। यहां हुए उपचुनाव में बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया था विमला बाथम को जबकि उनकी ्प्रमुख प्रतिद्वंद्वी थीं सपा की काजल शर्मा। काजल शर्मा जैसा कि सरनेम से पता चलता है, ब्राह्मण हैं। विमला बाथम को लेकर उनके विरोधियों ने खबर फैला दी कि वह ईसाई हैं। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान विमला बाथम को यह बात लगातार कहनी पड़ी कि वह वैश्य हैं। बाथम सरनेम से किसी और जाति-धर्म का मतलब नहीं। जितिन प्रसाद के बीजेपी जॉइन करते ही यह खबर तेजी से फैली या फैलाई गई कि वह प्रदेश में बड़े ब्राह्मण चेहरा हैं और इसलिए बीजेपी उन्हें अपने पाले में लेकर आई है। अब इनके सरनेम से तो ब्राह्म...

इमेज बनाने की कोशिश में गोइठा पाथ दिया 'महारानी' ने

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कुछ सच्चे पात्रों के साथ फर्जी कहानी। 2020 में जंगलराज की वजह से बिहार विधानसभा का चुनाव हारने के बाद अगले चुनाव से पहले उस पर पर्दा डालने की कोशिश। चारा घोटाला को दाना घोटाला कह कर नाम को लेकर कन्फ्यूज करने का प्रयास और तथ्यों को तोड़-मरोड़कर ही नहीं, बल्कि उसे पूरी तरह सहूलियत के मुताबिक दिखाने की कला का प्रदर्शन। कहानी भी सच्ची घटना से मिलती-जुलती रखिए, जगह का नाम भी जो हकीकत में है उसे रखिए और यह भी कह दीजिए कि यह सब काल्पनिक है। इसलिए कोई अगर किसी सच्ची घटना पर आधारित या उसके आसपास की मूवी या वेब सीरीज बनाता है, तो वह कितनी छूट ले सकता है, इसकी सीमा रेखा तय करने का भी वक्त आ गया है। इस वेब सीरीज के बाद बिहार के रास्ते सिर्फ ट्रेन या प्लेन से गुजरने वाले भी एक बार फिर बिहार के बारे में लिखने-बोलने लगेंगे। एक बार फिर मायावती और ममता के बराबर का कद राबड़ी देवी का बताने वाले समीक्षकों की बाढ़ आ जाएगी। कुल मिलाकर यह वेब सीरीज राजनीतिक मकसद हासिल करने के इरादे से बनाई गई है, लेकिन इसे रियल स्टोरी बताने से भी गुरेज किया गया है। फैक्ट से छेड़छाड़ लालू यादव ने जब बिहार का सीएम और वित्त मंत्री ...