देव स्वतंत्र नहीं रहेंगे या मऊ में अरविंद (कमल) खिलाने की रणनीति
वैसे अरविंद शर्मा की राजनीति में एंट्री भी चौंकाने वाली थी। बीजेपी में शामिल होते ही एमएलसी कैंडिडेट घोषित कर दिए गए थे। गुजरात कैडर के इस पूर्व नौकरशाह को प्रधानमंत्री मोदी का करीबी माना जाता है।
आज के बदलाव के कुछ कयास हैं। या तो विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण के दौरान प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र नहीं रहेंगे। टिकट वितरण में केंद्रीय नेतृत्व को जिस नाम पर ऑब्जेक्शन लगवाना होगा, वह अरविंद शर्मा के माध्यम से लगवाया जाएगा।
या यह कि अरविंद शर्मा को मऊ सदर से विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाया जाए, जहां से मुख्तार अंसारी 2017 में बसपा के टिकट पर चुनाव जीते हैं। इसके लिए उनका फेस वैल्यू बढ़ाया जा रहा हो। बीजेपी कैंडिडेट अशोक सिंह विधानसभा के पिछले चुनाव में समय पर सिंबल निर्वाचन कार्यालय में जमा नहीं कर सके थे और बीजेपी रेस से बाहर हो गई थी। इतनी इम्पोर्टेन्ट सीट पर इस तरह उम्मीदवारी रद्द होने से कई तरह की चर्चाएं थीं। अंत में बीजेपी ने वहां भारतीय समाज पार्टी के महेंद्र राजभर को सपोर्ट किया था। मुख्तार सात-आठ हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे। मुख्तार के कद के लिहाज से यह अंतर बहुत कम है और बीजेपी समर्थक तभी से इस मलाल में हैं कि अपना कैंडिडेट रहता तो यह सीट निकल भी सकती थी। पिछली बार यह सीट बाहुबलि और कटप्पा को लेकर भी चर्चा में रही थी।
अरविंद शर्मा उसी मऊ जिले के हैं। जातिगत संतुलन भी उनके पक्ष में है और अगर इस सीट पर मुख्तार अंसारी को हरा सके तो ईस्टर्न यूपी में बीजेपी के अंदर एक नया पावर सेंटर बनेगा। साथ ही मनोज सिन्हा की सीएम बनने की उम्मीदवारी जो पिछली बार ऐन वक्त पर खारिज़ हो गई थी, उस घटना से पैदा हुई उनके स्वजातीय वोटरों की नाराजगी भी बीजेपी कम कर सकेगी, यह रणनीति हो सकती है।
बाकी और भी वजहें हो सकती हैं, जो आगे दिखाई दे सकती हैं।
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