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Showing posts from July, 2021

ब्राह्मण शंख बजाएगा, पर हाथी किधर जाएगा?

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अयोध्या सम्मेलन की तस्वीरें। फोटो : खेमराज वर्मा 23 जुलाई यानी शुक्रवार को अयोध्या में बसपा का एक सम्मेलन हुआ, जिसे पहले ब्राह्मण सम्मेलन नाम दिया गया था, फिर ऐन वक्त पर उसे ‘प्रबुद्ध वर्ग विचार गोष्ठी’ नाम दे दिया गया। इस सम्मेलन में परंपरागत नारों के अलावा जय श्रीराम और जय परशुराम के भी नारे लगे। बीबीसी की रिपोर्ट है कि नारे तो परशुराम के नाम के जरूर लगे, लेकिन मंच पर उनकी कोई फोटो नहीं थी। इस बारे में पूछे जाने पर सम्मेलन में मौजूद लोगों ने बताया कि मंच पर फोटो तो उसी की लगेगी, जिसने समाज के लिए कुछ किया हो। राम और परशुराम के जयघोष के बीच जब बीबीसी ने सतीश चंद्र मिश्रा को बसपा के पुराने विवादास्पद नारों की याद दिलाई तो  उन्होंने कहा कि ये नारे न तो किसी बसपा नेता ने कभी लगाए और न ही ऐसै  नारे कभी मंच से लगाए गए। सतीश चंद्र मिश्रा ने वहां तमाम धार्मिक कर्मकांड किए और उन्हें गिनाया भी। वैसे यह भी हैरान करने वाली बात है कि जब सतीश चंद्र मिश्रा यह बता रहे थे कि प्रदेश में 13 फीसदी ब्राह्मण और 23 फीसदी दलितों के पास ही सत्ता की चाबी है, उसके अगले दिन शनिवार को राजद नेता तेजस्वी ...

गुरु : बंधु भी बनो और सखा तुम्हीं

आज गुरु पूर्णमा पर तमाम लोग गुरुओं के प्रति श्रद्धा भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। इसे ऋषि ऋण भी मान सकते हैं। तीन ऋण लेकर मनुष्य जनमता है-देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। पूजा-पाठ और हवन यज्ञ से मनुष्य देव ऋण से उऋण होता है और संतान उत्पति करने से पितृ ऋण से। विद्या अर्जन और उसका प्रसार करने से मनुष्य ऋषि ऋण से मुक्त हो जाता है। ऋषियों को गुरु की श्रेणी में रखा जा सकता है।  गुरु वह है जो हमारा धर्म परिवर्तन कराए। धर्म परिवर्तन यानी विचारों में परिवर्तन। किसी एक धर्म से दूसरे धर्म में गमन की क्रिया नहीं। एक धर्म से दूसरे धर्म में गमन की क्रिया धर्मांतरण कही जाती है।  विचारों में परिवर्तन करवाने वाले को गुरु माना जाए तो रामचंद्र सुग्रीव के गुरु हुए। सुग्रीव तो अपने बड़े भाई बालि के भय से हनुमान और जामवंत आदि सचिवों के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर छिप कर रह रहे थे। राम उनके विचारों में परिवर्तन लाए और इसके बाद ही सुग्रीव अपने भाई बालि के साथ युद्ध को तैयार हुए। हालांकि इसकी एक वजह यह भी थी कि राम ने उन्हें भरोसा दिया था कि बालि से संग्राम के दौरान वह उनकी मदद करेंगे, यह आश्वासन भी सुग्रीव के विचार...

जिल्ले इलाही

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सत्ता केंद्र की कमजोरी होती है, वह अपने सामने किसी को पनपने नहीं देना चाहता, भले वह कितना भी बेहतर परफ़ॉर्मर हो। इस कवायद में भले सत्ता नष्ट हो जाए, यह मंजूर होता है। यदि किसी ने केंद्रीय नेतृत्व का बिना आशीर्वाद लिए किसी मौके पर या लगातार बढ़िया उपलब्धि हासिल कर ली, तो नेतृत्व इस ताक में लग जाता है कि कब और कैसे उसे फंसाया जाए? निपट तो वह खुद ही जायेगा। पंजाब विधानसभा के पिछले चुनाव में कांग्रेस जीती और उसकी सरकार बनी। लेकिन परफॉर्म तो कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बेहतर किया था, बिना केंद्रीय नेतृत्व के भरोसे, लिहाजा जीत का श्रेय न सोनिया गांधी एंड फैमिली को मिला, न मिलना चाहिए था। लोग पांच साल तक कैप्टन की जीत की ही बात करते रहे।  अब फिर चुनाव का वक्त आ गया है। केंद्रीय नेतृत्व वहां पार्टी का प्रदर्शन कमज़ोर करने को तैयार है, लेकिन कैप्टन को फ्री हैंड देने को राजी नहीं। उसने नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया, जो पहले भाजपा में थे और कुछ दिनों से आम आदमी पार्टी का गुणगान कर रहे थे। राजनेता के रूप में सिद्धू का कद क्या कैप्टन जितना बड़ा है, इसका जवाब कांग्रेस को पारिवारिक पार्टी ब...