वर्ण व्यवस्था को खामोश चैलेंज


बादशाह अकबर ने एक बार बीरबल से कहा कि जमीन पर खिंची लकीर को बिना काटे या मिटाये छोटा करके दिखाओ। बीरबल ने तत्काल उस लकीर के समानान्तर उससे बड़ी लकीर खींच दी और कहा कि देखिये आपकी लकीर छोटी हो गई। यानी बादशाह को उसी की चाल से मात।
वर्ण व्यवस्था के संस्थापकों ने कहा कि ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण,भुजा से ठाकुर, जांघ से वैश्य और पैरों की उँगलियों से शूद्रों का जन्म हुआ।अधिकतर लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया। लेकिन एक जाति के नुमाइंदों ने बीरबल की तरह इससे बड़ी लकीर खींच दी कि उनके आदि पुरुष का जन्म ब्रह्मा के पूरे शरीर से हुआ है और ब्रह्मा की पूरी काया में स्थित होने के कारण उनकी जाति कायस्थ है। और यह वर्ण व्यवस्था को पहला चैलेंज था।
वर्ण व्यवस्था में चारों वर्णों के लिए चार त्यौहार भी नियत थे। ब्राह्मणों का रच्छा बंधन, ठाकुरों का दसहरा, वैश्यों की दिवाली और शूद्रों के लिए होली। दूसरी लकीर यह खींची गई और कहा गया कि कायस्थों का पर्व चित्रगुप्त पूजा है। चारों त्योहारों से इतर। यह सिस्टम को दूसरा चैलेंज था।
जाति वर्ण में समाज को बाँटने वालों ने गोत्र की भी कल्पना की। कहा जाता है कि एक गोत्र के लोग भाई बहन होते हैं इसलिए सगोत्र शादी नहीं हो सकती। तीसरी चुनौती यहाँ दी गई और पूरी कायस्घ् जाति के लिए एक ही गोत्र कश्यप तय हुआ और सगोत्र शादियां की जाने लगीं।
ब्राह्मणों ने अपने पास वेद पढ़ने का काम रखा और ठाकुरों के हाथों में तलवार थमा दी। चौथा विद्रोह इस मुद्दे पर हुआ और चित्रगुप्त के एक हाथ में लेखनी और दुसरे में कटनी की कल्पना की गई। साथ ही कायस्थों ने खुद को शक्ति का उपासक करार देकर कटनी की सार्थकता साबित कर दी।

चित्रगुप्त पूजा पर। इसे किसी जाति का महिमामंडन न समझा जाये। यह सामाजिक क्रांति की बात है।

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