नोएडा में बीजेपी जीती तो महेश शर्मा हारेंगे
दिल्ली से सटे गौतम बुद्ध नगर में यूपी विधान सभा की चुनावी बिसात पर सारे मोहरे सज चुके हैं। मोहरों के लिए बड़े खिलाड़ी चाल चल चुके हैं और अब इन प्यादों पर है कि कौन सारी बाधाएं पर कर वज़ीर बनता है और कौंन हाथी घोड़े की चाल में निपट जाता है। शतरंज से अलग इस खेल में खतरा यह भी है कि यहाँ पीछे खड़े अपने मोहरों से भी बचना होता है।
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पंकज सिंह के लिए प्लस पॉइंट यह होगा कि उन्हें बिना मेहनत के नवाब सिंह नागर और अशोक प्रधान का समर्थन मिलेगा |
तय कैंडिडेट्स के मुताबिक जो शुरुआती हालात हैं उससे लगता है कि नोएडा सीट पर बीजेपी जीतेगी और ऐसा हुआ तो पार्टी के जीतने पर भी बीजेपी के लोकल सांसद महेश शर्मा की हार होगी। जेवर सीट या तो बसपा जीत सकती है या ठाकुर धीरेंद्र सिंह। धीरेंद्र भले बीजेपी के कैंडिडेट हों लेकिन अगर उन्होंने सीट निकाली तो इसमें बीजेपी का बहुत रोल नहीं होगा। अभी लगता है कि धीरेंद्र की जीत महेश शर्मा की जीत होगी लेकिन यह राजनाथ सिंह की भी जीत हो सकती है। दादरी सीट बसपा के लिए सेफ है। यह इकलौती सीट है जहाँ बीजेपी जीती तो यह महेश शर्मा की जीत होगी। यहाँ जिन समीर भाटी पर कांग्रेस ने दांव खेला है वह कद्दावर नेता रहे महेंद्र भाटी के बेटे हैं और आज भी यही उनकी पहचान है। समीर हालाँकि एक बार विधायक रह चुके हैं लेकिन फ़िलहाल जीतने की सिथति में नहीं हैं।
नोएडा सीट पर बीजेपी ने सबसे अधिक सस्पेंस बनाया जबकि यह पार्टी की सेफ सीट मानी जाती है। शहरी वोटरों की अधिकता वाली इस सीट पर ब्राह्मण, ठाकुर,बनिया, और सोसाइटी में रहने वालों के वोट बीजेपी को मिल सकते हैं। चूँकि यहाँ की निवर्तमान विधायक विमला बाथम जीतने के समय से ही यहां विधायक आपके द्वार कैम्पेन चला रही थीं और नॉएडा में बस रही नई सोसाइटी में बीजेपी की उपसिथति दर्ज करा रही थीं। हालांकि यहाँ पंकज सिंह का नाम तय होने के बाद सांसद प्रतिनिधि संजय बाली ने ब्राह्मणों से अपील की है कि वे बीजेपी को वोट न दें। संजय खुद टिकट की दौड़ में थे। दरअसल यहाँ राजनाथ सिंह और महेश शर्मा आमने सामने थे। कई वजहों से महेश शर्मा का कद मोदी सरकार में बढ़ता जा रहा था। जिले की 2 सीटों पर वह पसंद के कैंडिडेट उतार चुके थे। इस सीट पर वह फंस गए। पंकज जीत गए तो जिले में महेश की बादशाहत को चुनौती मिलेगी और नया पावर सेंटर बनेगा। बीजेपी नेता और जनहित मोर्चा के संस्थापक नवाब सिंह नागर बागी होकर नहीं लड़े तो वे बजाय किसी गुर्जर कैंडिडेट की मदद करने के ठाकुर पंकज के साथ रहेंगे, ताकि महेश शर्मा को मात दे सकें। इसलिए भी यहाँ बीजेपी के जीतने के चांसेज बन रहे हैं। बसपा ने हालाँकि ब्राह्मण कैंडिडेट उताराा है, लेकिन 2014 के उपचुनाव में यहाँ वैश्य प्रत्याशी विमला बाथम से सपा की ब्राह्मण कैंडिडेट काजल शर्मा हार चुकी हैं। 2012 में बसपा का ब्राह्मण कैंडिडेट महेश शर्मा से हार चुका है। ठाकुरों को बीजेपी को वोट देने में इसलिये कन्फ्यूजन नहीं होगा क्योंकि एक साल से पार्टी कैंडिडेट घोषित कर अशोक चौहान को सपा हटा चुकी है। हालांकि जिले की तीनों सीटों के लिए महेश शर्मा ने जो कमल व्यूह बनाया उसके तीसरे दरवाज़े यानी तीसरी सीट पर वह घिर गए हैं। यहाँ पार्टी की हार में उनकी जीत है और पार्टी क़ी जीत में उनकी हार है। यहां महेश शर्मा इसलिए भी फंस रहे हैं क्योंकि बीजेपी ने हाल ही में अपने बड़े दलित नेता और 4 बार सांसद और केंद्रीय मंत्री रह चुके अशोक प्रधान की घर वापसी कर ली है। अशोक प्रधान और महेश शर्मा में 36 का आंकड़ा रहता है।
रविंद्र भाटी जिनको सपा ने टिकट देने के बाद बेटिकट कर दिया वह आरएलडी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं |
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