बिसाहड़ा में भाजपा का जोर, पूरे दादरी इलाके में मुस्लिम वोट सपा-कांग्रेस गठबंधन के साथ

बिसाहड़ा में आदर्श पोलिंग सेंटर बनाया गया था और शानदार टेंट, कारपेट,
चेयर सभी का इंतजाम था। इसका बावजूद कहीं न कहीं तल्खी भी थी जिसे लेकर राणा 
संग्राम  सिंह इंटर कॉलेज (यहां मतदान केंद्र था) का मेन गेट पूरी तरह नहीं खुला था।
साइड का गेट ही लोगों के लिए खोला गया था, जिसमें से एक बार में एक ही
दमी आ-जा सकता था। यही मिले थे सुबोध राणा (दाएं)। 
दूसरे पोलिंग सेंटरों पर पूरा गेट खुला था।
टिकट बंटने से लेकर चुनाव प्रचार चलने तक जहां नोएडा सीट गौतमबुद्ध नगर में सबसे हॉट मानी जा रही थी, वहीं वोटिंग वाले दिन जिले की दादरी सीट पर राजनीतिक पारा सबसे चढ़ा रहा। शनिवार को यहां सीधे-सीधे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था। बिसाहड़ा कांड की वजह से प्रशासन भी इस इलाके में चौकस था। इस सीट के कई बूथों पर मतदाताओं से बात करने पर साफ पता चला कि मायावती के बजाय सपा-कांग्रेस गठबंधन पर मुसलमानों ने भरोसा किया है। दादरी की नई आबादी वाले बूथ पर गठबंधन के प्रत्याशी समीर भाटी का जोर दिखा। हालांकि यह भी कहा जा सकता है कि चूकि समीर वहीं रहते हैं इसलिए वहां उनके पिता दिवंगत विधायक महेंद्र सिंह भाटी और समीर भाटी के व्यक्तिगत संबंधों और सपा का बैनर होने से उन्हें वोट मिल रहा था। लैकिन बीफ को लेकर हुए इखलाक हत्याकांड के बाद चर्चा में आए बिसाहड़ा में तो ऐसा नहीं था, लेकिन वहां भी मुसलमानों का रुझान सपा-कांग्रेस गठबंधन की तरफ दिखा। बिसाहड़ा के आदर्श मतदान पर मिले मुस्लिम वोटर सुबोध राणा ने साफ कहा कि मुस्लिम वोट तो गठबंधन को ही जा रहा है और यह ट्रेंड सभी सीटों पर है।

दादरी की नई आबादी से थोड़ा आगे चिटेहरा गांव है। यह गांव जीटी रोड पर है और यहां सपा समर्थक बहुत उत्साहित नहीं दिखे। उनका कहना था कि चूंकि इस बार उनका कैंडिडेट नहीं है इसलिए वोट चाहे गठबंधन को जाए या न जाए, उन्हें बहुत फर्क नहीं पड़ता। चिटेहरा और लुहारली गांवों के बगल से गुजर रही नहर कभी चौड़ी हुआ करती थी लेकिन जिस तरह वह सिकुड़ती जा रही है उसी तरह इस बार बसपा के वोट घटते दिखे। बोड़ाकी और दतावली गांवो के बीच जिस तरह तालाब की जमीन पर कब्जा कर मकान बनते जा रहे हैं उसी तरह बसपा के गैर दलित वोटों पर दूसरे दलों ने कुछ कब्जा किया है (इसे अवैध नहीं समझा जाए)।
सबसे बड़ी बात यह थी कि वोटिंग से कुछ दिन पहले तक जहां बीजेपी सबसे पीछे चल रही थी, वह प्रचार खत्म होने का समय आते-आते और वोटिंग वाले दिन लड़ाई में आ गई। कैसे, इसे समझने के लिए दो उदाहरण काफी होंगे। एनटीपीसी के पास स्थित प्यावली गांव में बीएसपी
इखलाक हत्याकांड के आरोपी
रविन की पत्नी और मां
कैंडिडेट सतवीर गुर्जर की अपने वोटरों के साथ सभा थी। उसमें गांव की महिलाएं भी थीं। इस बाबत जो विडियो वायरल हो रहा है उसमें साफ सुनाई देता है कि सतवीर वहां मौजूद लोगों को डांटने वाले अंदाज में समझाने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच माइक लेकर एक आदमी कहता है कि हमारे बच्चे विधायक के पास जाते हैं कि हमारे पास काम नहीं है तो वह पूछते हैं कि क्या नौकरी मेरी जेब में है जो निकालकर दे दूं। इसके बाद भीड़ उत्तेजित हो जाती है और लोग हूटिंग करते हुए वहां से चले जाते हैं। दूसरा उदाहरण वोटिंग वाले दिन दिखा। इखलाक हत्याकांड के आरोपी रविन (जिसकी जेल मे मौत हो चुकी है) की पत्नी बीजेपी पर नाराज दिखीं। उनका कहना था कि स्थानीय सांसद डॉ. महेश शर्मा ने पांच लाख रुपये देने की बात कही थी लेकिन पैसे नहीं मिले। चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में जब यहां राजनाथ सिंह की सभा हुई थी तब भी इस परिवार ने राजनाथ के भाषण में रविन का जिक्र नहीं करने पर नाराजगी जताई थी। इसके बावजूद इनका कहना था कि वे बीजेपी कीो वोट देंगे। ये दो उदाहरण यह बता रहे हैं कि बीजेपी कैसे लड़ाई में आई। तीसरा उदाहरण लुहारली गांव में मिला। राजकुमार भाटी इसी गांव के हैं जिन्हें सपा ने रविंद्र भाटी का टिकट काटकर कैंडिडेट बनाया था। बाद में यह सीट कांग्रेस को दे दी गई। इस गांव में एंटी बीजेपी वोटिंग होती थी, लेकिन चूंकि बीजेपी कैंडिडेट तेजपाल नागर की बहन की शादी इस गांव में हुई है लिहाजा यहां सबसे अधिक रुझान बीजेपी के पक्ष में दिखा। गठबंधन के उम्मीदवार समीर भाटी का यहां असर नहीं था। तेजपाल नागर नहीं होते तो यहां से अधिकतर गुर्जर वोट बीएसपी को जाता, लेकिन यहां बीजेपी को फायदा होता दिखा। जिले की नोएडा सीट के विपरीत यहां कई गांव दिखे जहां लास्ट माइल कनेक्टिविटी जैसे शब्दों का कोई मतलब नहीं है। इन खस्ताहाल सड़कों पर हाथी की चाल स्लो हो जाए तो आश्चर्य नहीं।
दादरी सीट पर लड़ाई भले त्रिकोणीय दिखे लेकिन लग रहा है कि बसपा और भाजपा में विजेता और उपविजेता का द्वंद्व है। 

Comments

Unknown said…
सटीक आकलन। बेहतरीन ग्राउंड रिपोर्टिंग

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