सरकार-3



26 मई, मोदी सरकार के तीन साल। अजीब संयोग है कि 2010 में गुजरात पर्यटन के ब्रैंड एंबेसडर बने अमिताभ बच्चन की फिल्म सरकार-3 भी इसी साल आई। महानायक की फिल्म चली नहीं और केंद्र सरकार की फिल्म अभी दो साल और चलनी है। इसे दर्शकों (वोटरों) का जो रेस्पॉन्स मिला है उससे आशंका भी नहीं है कि इंटरवल के तत्काल बाद इस पर पर्दा गिर जाए।
मख अश्व
इस सरकार ने आते ही अपने अश्वमेध का घोड़ा छोड़ दिया जो बिहार और दिल्ली को छोड़कर चारों ओर विजय पताका फहराता घूम रहा है। लोकल बॉडी से लेकर विधानसभाओं तक और कच्छ से कामरूप तक। लेकिन इस सरकार के दो मंत्रियों की परफॉर्मेंस पर गौर करना जरूरी है। गाय-गंगा का जाप करने वाली उमा भारती का और ट्विटर ब्वॉय सुरेश प्रभु का।

उमा की जटा में फंसी गंगा
गंगा की हालत सुधारने का जिम्मा उमा भारती को दिया गया और उनके लिए खास मंत्रालय बनाया गया। तीन साल में उनका काम सर्वे से आगे नहीं बढ़ पाया है। गंगा किनारे लगे उनके नाम के पत्थर राजनीतिक रूप से उमा को प्राणवायु दे रहे हैं और बगल में गंगा ऑक्सीजन विहीन होती जा रही है। क्या गंगा की गंदगी जानने के लिए किसी सर्वे की जरूरत है? या सर्वे में गंगा की लंबाई मापी जा रही है? तीन साल में कुछ तो ऐसा लगता कि गंगा कलकल न सही कुछ तो बहने लगती लेकिन उसकी तो धारा ही अवरुद्ध हो रही है। गंगा किनारे बसे कई शहरों के युवा अब उसमें नहीं नहाते। नदी किनारे दूब और पानी के अंदर सेवार की पौध लहलहा रही हैं। शहरों के नाले बदस्तूर उसमें गिर रहे हैं। खतरा उनलोगों से भी है जो गंगा में पाप भी धोते हैं और पिछवाड़ा भी लेकिन जहां नगरपालिकाएं या नगर निगम उस नाले को रोक नहीं पाते जो सीधे गंगा में गिरते हैं तो फिर ऐसे मंत्रालय का क्या काम? बिना ट्रीट किए नाले का पानी बक्सर समेत कई जगहों पर गंगा में जा रहा है और उतनी ही तेजी से हर रविवार को गंगाघाट पर सफाई अभियान चलाकर अखबारों में फोटो छपवाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। क्या गंगा  भी एक दिन समाप्त हो जाएगी?

प्रभु इच्छा पर ट्रेन की जर्नी
अब बात प्रभु लीला की। ट्रेनों के मामले में लोकप्रिय सरकार की अवधारणा का पालन नहीं हो रहा है। पहले 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए बर्थ लेने पर फुल टिकट का नियम आया और अब लोअर बर्थ लेने के लिए 50 रुपये की वसूली का। सरकार प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह क्यों काम कर रही है। क्या घाटे की हर भरपाई पब्लिक से ही होनी है? ट्रेनें न टाइम पर चलेंगी न सफाई और सुरक्षा टाइट होगी लेकिन किराया कई तरीकों से बढ़ता जाएगा। महत्वपूर्ण ट्रेनों में सीटों की उपलब्धता के अनुपात में सीटों के महंगा होने का फॉर्मुला देने वाले प्रभु न तो ट्रेनों को टाइम पर चलवा पा रहे हैं न कैंटीन माफिया को रोक पा रहे हैं। ट्रेनों में रेल नीर के बजाय नामालूम कंपनियों के पानी की बोतलें बिक रही हैं। खाने की क्वॉलिटी गिरती जा रही है। कोई मुसाफिर ट्वीट करता है तो अधिकारी उसका जवाब नहीं देते और प्रभु खुद से जय-जय करने में मशगूल हैं।

सरकार की परफॉर्मेंस
बाकी नोटबंदी व लालबत्ती जैसे मुद्दों पर जनता का भरोसा सरकार के साथ है। करप्शन का आरोप नहीं लगना भी प्लस पॉइंट है लेकिन सहारनपुर सिहरा रहा है। अब कोशिश यही होनी चाहिए कि सरकार बाहुबली साबित हो न कि सरकार-3...




Comments

Naveen Krishna said…
26 मई 2017 का ब्लॉ़ग, 20 दिसंबर 2017 के अंक में अमर उजाला ने लगाई मुहर

http://epaper.amarujala.com/ga/20171220/01.html?format=img&ed_code=ga#

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