रुनकी झुनकी बेटी मांगीला
छठ, लोक आस्था का महापर्व। जाहिर है इस पर्व पर लोक कंठों से फूटने वाले गीत सिर्फ तुकबंदी तो होंगे नहीं। पीढ़ी दर पीढ़ी गाए जा रहे छठ के सारगर्भित गीतों का यदि हम मतलब और मकसद समझ लें, तो समझिए छठ माता की पूजा करने जितना पुण्य मिल गया।
यह बात प्रचलित है कि छठ बेटों का त्योहार है। पुत्र प्राप्ति की इच्छा के साथ और पुत्र प्राप्ति के बाद कृतज्ञता जताने के लिए यह व्रत किया जाता है। लेकिन, छठ के गीत इससे पूरी तरह इत्तफाक नहीं रखते। कई गानों में बेटियों की कामना की गई है। ऐसा ही एक गीत है - पांच पुत्तर, अन्न-धन लक्ष्मी, धियवा (बेटी) मंगबो जरूर । यानी बेटे और धन-धान्य की कामना तो की गई है, लेकिन उसमें यह बात भी है कि छठ माता से बेटी जरूर मांगना है। यह 'जरूर' शब्द साबित करता है कि बेटियों को लेकर छठ पूजा करने वाले समाज ने बेटों और बेटियों में फर्क नहीं किया। एक और गीत यूं है कि रुनकी-झुनकी बेटी मांगीला पढ़ल पंडितवा दामाद, हे छठी मइया...।
संभवत: ये गीत स्त्री कंठों से फूटे थे और आज भी छठ के मौके पर आमतौर पर महिलाएं ही इन गीतों को गाती हैं, जबकि व्रतियों में पुरुष भी होते हैं। दाद दीजिए, कई पीढ़ी पहले की महिलाओं ने क्या गजब की कल्पना की थी। रुनकी-झुनकी यानी स्वस्थ और घर-आंगन में दौड़ने वाली बेटी के साथ-साथ वे छठी मइया से पढ़ा-लिखा दामाद भी मांगती हैं। यहां यह बात ध्यान देने लायक है कि गीतों में नौकरीपेशा या व्यापार करने वाले दामाद की कल्पना नहीं है। तब ये महिलाएं भले ही अनपढ़ और पिछड़ी हों, राजा तो अपने देश में ही पूजा जाता है, लेकिन विद्वान की पूजा सर्वत्र होती है। इस सिद्धांत की औपचारिक जानकारी उन्हें न हो, लेकिन विद्या के महत्व से वे परिचित थीं। निश्चित रूप से वे मानती थीं कि मानव शरीर की संरचना में दिमाग का स्थान यूं ही सबसे ऊपर नहीं है।
यह पर्व मुख्य रूप से बिहार (झारखंड समेत) और पूर्वी उत्तर प्रदेश का है, जो जातीयता के लिए बदनाम है। छठ के गीतों में भी समाज की जातीय संरचना को दरकिनार नहीं किया गया है। इस तल्ख सच्चाई से आंखें नहीं मूंदी गई हैं, बल्कि सभी जातियों को उचित सम्मान देने की कोशिश की गई है। एक बहुचर्चित गीत है - छोटी-मुटी मालिन बिटिया के भुइयां लोटे हो केस, फूलवा ले अइह हो बिटिया अरघिया के बेर। इसी तरीके से ग्वालिन बिटिया का अर्घ्य के समय दूध के लिए भी जिक्र आता है। साथ ही, एक बार फिर इन गीतों में बेटियों का जिक्र आना यह साबित करता है कि ऊपर के गानों में बेटियों की कामना महज संयोग नहीं है। इन गीतों पर हम अमल कर लें तो समाज में असमान होते लिंगानुपात को समान करने के लिए किसी अभियान का मुंह नहीं ताकना पड़ेगा।
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