ये बौखलाहट का भी दौर है

देश की सियासत में गिरावट की बात कई बार कही जा चुकी है और आज का दौर भी उससे अछूता नहीं है लेकिन साथ ही यह बौखलाहट का भी दौर है।
बसपा बौखलाहट में है, जो हरियाणा में लगातार सहयोगी दल बदल रही है। पहले inld से समझौता और जींद उपचुनाव में इनेलो की पराजय के बाद राजकुमार सैनी की पार्टी से गठबंधन।
ममता बौखलाहट में हैं जो विरोधी दलों के नेताओं को अपने स्टेट में रैली और सभा करने की इजाज़त नहीं दे रही है। सीएम अधिकारियों के घर हाई लेवल मीटिंग कर रही हैं।
कांग्रेस बौखलाहट में है जो तीन राज्यों का चुनाव जीतने के बाद भी भाषा के स्तर पर इतना गिर गई है कि राहुल गांधी खुद चौकीदार चोर है के नारे लगवा रहे हैं।  प्रियंका को अचानक पार्टी का महासचिव और प्रभारी बनवाना इसी बौखलाहट का हिस्सा है।
बौखलाहट bjp में भी है। इसी बौखलाहट में पुरस्कारों के लिए नाम तय किये जा रहे हैं और हर विरोधी नेता के पीछे सीबीआई और ED को लगाने का आरोप पार्टी पर लग रहा है। अपने पूरे कार्यकाल की उपलब्धियों पर भरोसा नहीं है, लिहाजा 10 फीसदी गरीब कोटा और इनकम टैक्स स्लैब 5 लाख तक करने का गेम किया गया।

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