बेगूसराय बनाम बगोदर

पहले बिहार फिर झारखंड के गिरिडीह जिले की बगोदर विधानसभा सीट से लड़ते और जीतते थे। विधायक रहते हुए शहीद हुए। हमलावरों ने जब पूछा कि तुममे से कौन है महेंद्र सिंह तो निर्भीक हो कर सामने आए और कहा कि मैं ही हूं महेंद्र सिंह। गोलियां चली और हमलावरों ने उन्हें मार डाला यह सोच कर चले गए कि उन्होंने महेंद्र सिंह की हत्या कर दी है। लेकिन आज भी उनके शहादत दिवस पर बगोदर में जुटने वाली भीड़ साबित करती है कि उन कारतूसों में यकीनन बारूद नहीं रहा होगा। वह 2005 का सर्द दिन था।
झारखंड की पहली विधानसभा में सीपीआई एमएल के अकेले विधायक थे। बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी और इंदर सिंह नामधारी विधानसभा अध्यक्ष। उन्होंने एक बार सदन में कहा था कि महेंद्र सिंह अकेले सम्पूर्ण विपक्ष की भूमिका निभाते हैं और उनकी मौजूदगी में किसी और विपक्ष की जरूरत नहीं। उन्होंने bjp विधायको को भी महेंद्र सिंह से कुछ सीखने को कहा था।
महेंद्र सिंह के चुनाव में न फ़ेवर करनेवाले जर्नलिस्ट जुटते थे न दिल्ली से गए एक्टिविस्ट। वे जनता के दम पर चुनाव लड़ते थे। जैसा पिछले दिनों बेगूसराय में हुआ, वैसे बगोदर कभी इलेक्शन टूरिज्म का केंद्र नहीं बना। हर बात को इत्मीनान से कहते थे और बात में वजन पैदा करने के लिए कभी उस पर बॉडी लैंग्वेज को नहीं थोपते थे। रांची में जब वह रशियन हॉस्टल में रहते थे, तब उनसे मुलाकात हुई घी। दो कमरे के एमएलए आवास में एक फोल्डिंग पर हम सभी लोग बैठे थे। इस बार कोई बताएगा कि बेगूसराय के होटलों ने इलेक्शन टूरिज्म के नाम पर कितने का कारोबार किया? पटना से वहां तक रोज़ाना कितना टैक्सी किराया चुकाया गया? बाहरी लोगों की भीड़ जुटाकर माहौल अपने पक्ष में होने का दावा करना वामपंथ की किस पाठशाला में पढ़ाया गया है? महेंद्र सिंह ने ऐसा नहीं किया कि नेसकैफ़े की सब्सिडी वाली कॉफी भी पीएंगे और प्रेज़िडेंशिएल डिबेट में एमएनसीज को गाली भी देंगे।

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