इस अस्पष्ट जनादेश के संदेश स्पष्ट हैं
छोटा राज्य, बड़ी राजनीति, हरियाणा को लेकर कहा जाने वाला मुहावरा फिर सही साबित हुआ है। मतदान से पहले तक आसानी से जीत रही बीजेपी नतीजों के व्यूह में फंस गई। कांग्रेस को सहानुभूति में वोट मिले या भाजपा से नाराज़ वोटर उसके साथ हो लिए, यह मीमांसा का विषय हो सकता है। शुरू में सिर्फ जजपा किंग मेकर की भूमिका में दिख रही थी, अब कई किंगमेकर हो गए हैं। कांग्रेस : पार्टी राज्य में न सिर्फ दोबारा जीवित हुई है, बल्कि उसने दमदार वापसी भी की है। चुनाव से ऐन पहले राज्य में नेतृत्व परिवर्तन का पॉजिटिव असर पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ा। इस नतीजे ने पार्टी के अंदर क्षेत्रीय क्षत्रपों का कद बड़ा किया है वही यह भी साबित हो गया कि पार्टी कम से कम हरियाणा के अंदर सिर्फ राहुल-प्रियंका पर निर्भर नहीं है। प्रियंका स्टार प्रचारक होने के बावजूद विधानसभा चुनाव के दौरान यूपी में संगठन के चुनाव में उलझी रहीं, वहीं राहुल ने बेमन से प्रचार की रस्मअदायगी की। पार्टी का जिलों में संगठन भी नहीं था। हालांकि इसका एक दूसरा पक्ष भी है और वह यह कि बिना संगठन चुनाव में इतनी सफलता तभी मिलती है जब जनता विकल...