क्यों रघुबर डूब गए?

सरजू ने धारा बदली और रघुबर उसमें डूब गए। ठीक है रघुबर (रघुबर दास) को सरजू (सरयू राय) के कुपित होने का खमियाजा भुगतना पड़ा, लेकिन उनके अनुज लक्ष्मण (प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ) क्यों हारे? रघुबर जिस सूर्यवंश से आते हैं, उसके दिनेश (विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव) पर क्यों ग्रहण लगा? जवाब सीधा नहीं है। घना कुहरा छाया हुआ है। चीजें साफ नहीं दिख रही हैं।

चलिए इसका एक कारण पत्थलगड़ी आंदोलन को मानते हैं। आंदोलन का पत्थर जमीन में गड़ता गया और बीजेपी सरकार उखड़ती गई। यह सच है तो फिर उस खूंटी सीट पर भाजपा के नीलकंठ मुंडा कैसे जीते, जहां यह आंदोलन हो रहा था। उसी खूंटी जिले की दूसरी सीट तोरपा पर भाजपा के ही कोचे मुंडा क्यों जीते? जाहिर है कि इसका असर चुनाव में नहीं था।

बेरोज़गारी एक कारण हो सकती है। इसका जिक्र रघुबर के कैबिनेट मंत्री के रूप में सरजू राय कई बार कह चुके थे, लेकिन कारणों के रूप में इसकी चर्चा नहीं हो रही। कई लोग बताते हैं कि कई महकमों में कर्मचारी नहीं हैं, वर्कलोड बढ़ता जा रहा है लेकिन बहाली नहीं हो रही। यह रघुबर के खिलाफ अफवाह नहीं थी, बल्कि तल्ख सच्चाई थी, जिसे रामराज की आड़ लेकर छुपाया गया और रघुबर डूब गए। 

झारखंड में दो मूलवासियों की बड़ी आबादी है-आदिवासी और महतो। गैर आदिवासी मूलवासी में सबसे बड़ी आबादी महतो की है। सुदेश महतो की पार्टी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) का इन पर असर माना जाता है। आजसू प्रमुख सुदेश महतो इसी जाति से आते हैं। इस बार बीजेपी और आजसू अलग-अलग होकर लड़े थे। बीजेपी की रणनीति जब सफल हो रही थी तब उसने हर स्टेट में स्थानीय सबसे अधिक आबादी और प्रभावशाली जाति के सामने छोटे-छोटे समूह वाली जातियों का गठबंधन खड़ा किया। हरियाणा में गैर जाट, महाराष्ट्र में गैर मराठा और यूपी में गैर यादव मुख्यमंत्री देकर। लेकिन झारखंड में दो जाति समूहों का विरोध महंगा पड़ा। यह एक वजह हो सकती है।

लोकतंत्र में दम्भ किसी का नहीं चला। लोग कहते हैं कि इंदिरा गांधी का भी नहीं। विधानसभा चुनाव में हार के बाद रघुबर दास की मीटिंग में बवाल हुआ और कार्यकर्ताओं ने साफ कहा कि वे अपने कुछ रिश्तेदारों की सम्पति की जांच कराएं, जो उन्होंने पिछले पांच साल में अर्जित की है। लोग बताते हैं कि दम्भ का आलम यह था कि हाथी उड़ाने की कोशिश की गई। हाथी तो खैर क्या उड़ता, आप खुद उड़ गए। पूरे देश में आपके कट्टर समर्थक अपर कास्ट चुनाव में क्यों खामोश रहे?

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