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Showing posts from September, 2020

गुप्तेश्वर पांडे को हड़बड़ी क्यों थी वीआरएस की?

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बिहार पुलिस के डीजी रहे गुप्तेश्वर पांडे को वीआरएस लेने की इतनी हड़बड़ी क्यों हो गई थी? रिटायरमेंट के बाद वह आराम से एमएलसी बन सकते थे, यदि उन्हें विधायक ही बनने का शौक था। बिहार में विधान परिषद तो है ही। दूसरी बात यह कि एक डीजीपी के कद के लिहाज से विधानसभा का चुनाव छोटा होता है, क्योंकि वह जीतते भी हैं तो मुख्यमंत्री तो नहीं बनेंगे। गुप्तेश्वर पांडे के गृह जिले बक्सर के एक अन्य आईपीएस बीडी राम, जो झारखंड के पुलिस चीफ रह चुके हैं, पलामू से सांसद हैं। खुद गुप्तेश्वर पांडे 2009 में लोकसभा का चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुके थे। जेडी यू से शिवानन्द तिवारी को निकाले जाने के बाद पार्टी में ऐसा कोई ब्राह्मण चेहरा नहीं बचा था, जिसे प्रदेश भर में लोग जानते हों। दूसरी तरफ, राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा पार्टी में ब्राह्मण नेता की कमी पूरी कर रहे हैं। राजद ने उन्हें पार्टी का प्रवक्ता भी बनाया है और हाल ही में वह राज्यसभा में उपसभापति के चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार भी बने थे। शिवानन्द तिवारी के बेटे राहुल तिवारी राजद के टिकट पर शाहपुर से विधायक हैं। सासाराम लोकसभा क्षेत्र की करगहर विधानसभा सीट को ल...

ब्रह्म बाबा

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आपने गांव में ब्रह्म बाबा का स्थान देखा है? दो गांवों के बीच में, सन्नाटे वाला रास्ता और वहां बना ब्रह्म बाबा का चौरा। दूसरे मंदिर गांव के अंदर होते हैं या किसी तालाब या स्कूल के पास, लेकिन ब्रह्म बाबा तो निर्जन में ही रमते हैं। पहले जब आबादी इतनी घनी नहीं थी, तब कभी-कभी दोपहरी में दो गांवों के बीच का रास्ता भी भय पैदा कर देता था। तब वहां सहारा वहीं ब्रह्म बाबा होते थे, जिनके ऊपर आमतौर पर छत भी नहीं होती। लोग उन्हीं को गोहराते हुए रास्ता पार करते थे। वहां न कोई सालाना मेला लगता था न कोई और आयोजन, हां तीन-चार दशक पहले बेरोजगार युवा वहां कभी-कभी टाइमपास करने के लिए हरिकीर्तन करते थे। इस उपेक्षा के बाद भी ब्रह्म बाबा सबके सम्बल होते थे। रविवार को राजनीति के ब्रह्म बाबा रघुवंश बाबू नहीं रहे। कभी जिनके लिए एक इंग्लिश अखबार ने हेडिंग लगाई थी, one man opposition. आज एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि वह उपराष्ट्रपति बन सकते थे, चर्चा भी हो रही थी, लेकिन लालू यादव ने इसमें रोड़े अटका दिए। इसके बाद भी रघुवंश बाबू जिंदगी भर लालू यादव के पीठ पीछे खड़े रहे। सामाजिक न्याय का मसीहा जो भी बने, रघुवंश ...

बिहार की चुनाव डायरी 1

बिहार में चुनाव में सबकी दिलचस्पी रहती है। इस बार भी है। साक्षात्कार आ रहे हैं, मीमांसा हो रही है, गठबंधन और हार-जीत के पूर्वानुमान लगाए जा रहे हैं। पिछले दिनों दो घटनाएं नोट करने लायक हुईं। महेश भट्ट की मूवी सड़क 2 का ट्रेलर रिलीज हुआ और इसे एक करोड़ 20 लाख लोगों ने ऑनलाइन डिस्लाइक किया। यह दुनिया भर में नापसंदगी का दूसरा सबसे बड़ा उदाहरण था। उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात की और उसे भी लाइक से अधिक डिस्लाइक किया गया। इन दोनों ट्रेंड पर खूब चर्चा हुई, बहस हुईं। इन दो उदाहरण के बाद फिर आते हैं बिहार की चुनावी चर्चा पर। विश्लेषक भाजपा, राजद, जदयू, लोजपा, हम, रालोसपा, जाप, वीआईपी के गिर्द घूम रहे हैं। यदि आभासी दुनिया में मिलने वाले समर्थन या विरोध को सच माना जाए तो बिहार की राजनीति में चर्चा #pushpampriyachoudhary और उनके दल #plurals की भी होनी चाहिए, जो कहीं दिख नहीं रही। इनके फेसबुक पेज पर 4 लाख 64 हज़ार से अधिक फॉलोवर दिख रहे हैं। पलूरल्स का डिस्ट्रिक्ट वाइज पेज भी दिख रहा है और उससे हज़ारों लोग जुड़े दिखाई दे रहे हैं। क्या किसी के साथ इतने लोगों का जुड़ना उसे चर्चा में ला...

फिर दौड़ने लगी जापानी गुड़िया

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25 दिसम्बर 2002 को जब दिल्ली में मेट्रो चली तब शाहदरा के फ़ोटो और वीडियो फुटेज मीडिया में आये थे लोग किस तरह इसे देखने के लिए पागल हुए जा रहे हैं। आज पांच महीने से अधिक समय तक बंद रहने के बाद मेट्रो चलने लगी। दिल्ली मेट्रो ही नहीं, बल्कि गुड़गांव की रैपिड मेट्रो और ग्रेटर नोएडा जाने वाली एनएमआरसी की मेट्रो भी। दो पालियों में मेट्रो चलने लगी है। जैसे मेट्रो फेज वाइज शुरू हुई थी वैसे ही इस लंबे ब्रेक के बाद भी यह फेज वाइज ही चलेगी। पहला मौका मिला है गुड़गांव वाली यलो लाइन को। कलकत्ता मेट्रो अपना वास्ता 1992 में ही मेट्रो से पड़ चुका था। कलकत्ता मेट्रो जो तब कालीघाट से धर्मतल्ला तक चलती थी। बीच में मैदान स्टेशन है, जहां से विक्टोरिया मेमोरियल जाया जाता है। मैदान छोटा स्टेशन है, जहां से हमलोग मेट्रो पकड़ते थे तब मेट्रो का टिकट रेलवे के पुराने टिकटों की तरह होता था। एंट्री पॉइंट पॉइंट पर ही टिकट चेक होते थे और टिकट चेकर उसे हैंड हेल्ड मशीन से प्रेस करता था और टिकट M के आकार में थोड़ा सा कट जाता था। किसी-किसी स्टेशन पर AFC गेट जैसा भी होता था, लेकिन वह दिल्ली मेट्रो से बिल्कुल अलग था। उसमें टिकट...