फिर दौड़ने लगी जापानी गुड़िया

25 दिसम्बर 2002 को जब दिल्ली में मेट्रो चली तब शाहदरा के फ़ोटो और वीडियो फुटेज मीडिया में आये थे लोग किस तरह इसे देखने के लिए पागल हुए जा रहे हैं। आज पांच महीने से अधिक समय तक बंद रहने के बाद मेट्रो चलने लगी। दिल्ली मेट्रो ही नहीं, बल्कि गुड़गांव की रैपिड मेट्रो और ग्रेटर नोएडा जाने वाली एनएमआरसी की मेट्रो भी। दो पालियों में मेट्रो चलने लगी है। जैसे मेट्रो फेज वाइज शुरू हुई थी वैसे ही इस लंबे ब्रेक के बाद भी यह फेज वाइज ही चलेगी। पहला मौका मिला है गुड़गांव वाली यलो लाइन को।

कलकत्ता मेट्रो

अपना वास्ता 1992 में ही मेट्रो से पड़ चुका था। कलकत्ता मेट्रो जो तब कालीघाट से धर्मतल्ला तक चलती थी। बीच में मैदान स्टेशन है, जहां से विक्टोरिया मेमोरियल जाया जाता है। मैदान छोटा स्टेशन है, जहां से हमलोग मेट्रो पकड़ते थे तब मेट्रो का टिकट रेलवे के पुराने टिकटों की तरह होता था। एंट्री पॉइंट पॉइंट पर ही टिकट चेक होते थे और टिकट चेकर उसे हैंड हेल्ड मशीन से प्रेस करता था और टिकट M के आकार में थोड़ा सा कट जाता था। किसी-किसी स्टेशन पर AFC गेट जैसा भी होता था, लेकिन वह दिल्ली मेट्रो से बिल्कुल अलग था। उसमें टिकट डालने पर एक बार पहिया घूमता था और एक ही आदमी अंदर जा सकता था। वह पहिया ऐसा होता था मानो तीन पैर वाले स्टूल को आड़ा करके रख दिया गया हो।

तब अंदर भी चेकिंग

दिल्ली मेट्रो का पहला इंटरचेंज स्टेशन था, कश्मीरी गेट। पहली अंडरग्राउंड मेट्रो चली विश्वविद्यालय तक। वहां एक ऐसा एस्केलेटर है जो ऊपर से नीचे के प्लेटफॉर्म तक सीधे पहुंचा देता था। सभी लोगो में इसका आकर्षण था। अभी जहां से वायलेट और येलो लाइन के रास्ते शुरू होते हैं, वहां एक और चेकिंग पॉइंट होता था। अंडरग्राउंड यानी येलो लाइन पर जाने से पहले वहां दोबारा चेकिंग होती थी, जिसे कुछ साल से बन्द कर दिया गया है।

स्मार्ट और सुरक्षित सफर

दिल्ली मेट्रो शुरू होने के बाद लोगों को तय समय में सफर पूरा  करने का मौका मिला। इससे वे प्लान बनाकर काम करने लगे। एस्केलेटर से लोगों की दोस्ती हुई। हालांकि परिचय नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की पहाड़गंज साइड में पहले ही हो चुका था लेकिन इतने अधिक एस्केलेटर मेट्रो की बदौलत ही दिखे। मेट्रो के कई स्टेशनों पर बने कैफे मीटिंग पॉइंट बनते गए। यलो लाइन के विश्वविद्यालय स्टेशन की सीढ़ियां लव बर्ड्स का ठिकाना बनती गईं। उसी स्टेशन पर एंट्री और 20 रुपये कटाकर एग्जिट करने का फैशन भी बढ़ा। इसकी सीढ़ियों के पास चैरिटी वाली संस्थाओं के लोग डोनेशन बॉक्स लेकर खड़े होने लगे।

शहर को एकरूपता 

दुकानों के पते मेट्रो के पिलर नंबर से जाने जाने लगे। जिस हिस्से से एलिवेटेड मेट्रो गुजरती है वह पूरा इलाका एक जैसा ही दिखाई देने लगा। हालांकि इसने शहर की विविधता में भी कमी की, लेकिन लोगों ने इसे स्वीकार किया। मेट्रो के पैरलल मोनो रेल के लिए भी एनसआर के कई शहरों में चर्चा चली लेकिन वह चर्चा से आगे नहीं बढ़ सकी।

कोने वाली दो सीटें

दिल्ली मेट्रो के कोच के लास्ट में जो दो सीटें होतीं हैं, उनका लव बर्ड्स ही नहीं, न्यूली मैरिड कपल में भी काफी आकर्षण होता था। जहां से ट्रेन स्टार्ट होती थी, वहां से तो ऐसे लोगों को मनवांछित सीट मिल जाती थी, लेकिन बीच के स्टेशन से चढ़ने वाले मन मसोस कर रह जाते थे। बाद में यह सीट सीनियर सिटीजन के लिए रिज़र्व हो गई और इसका आकर्षण सिर्फ इतना ही बचा है कि वहां मोबाइल का चार्जिंग पॉइंट होता है।

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