ब्रह्म बाबा

आपने गांव में ब्रह्म बाबा का स्थान देखा है? दो गांवों के बीच में, सन्नाटे वाला रास्ता और वहां बना ब्रह्म बाबा का चौरा। दूसरे मंदिर गांव के अंदर होते हैं या किसी तालाब या स्कूल के पास, लेकिन ब्रह्म बाबा तो निर्जन में ही रमते हैं। पहले जब आबादी इतनी घनी नहीं थी, तब कभी-कभी दोपहरी में दो गांवों के बीच का रास्ता भी भय पैदा कर देता था। तब वहां सहारा वहीं ब्रह्म बाबा होते थे, जिनके ऊपर आमतौर पर छत भी नहीं होती। लोग उन्हीं को गोहराते हुए रास्ता पार करते थे। वहां न कोई सालाना मेला लगता था न कोई और आयोजन, हां तीन-चार दशक पहले बेरोजगार युवा वहां कभी-कभी टाइमपास करने के लिए हरिकीर्तन करते थे। इस उपेक्षा के बाद भी ब्रह्म बाबा सबके सम्बल होते थे।

रविवार को राजनीति के ब्रह्म बाबा रघुवंश बाबू नहीं रहे। कभी जिनके लिए एक इंग्लिश अखबार ने हेडिंग लगाई थी, one man opposition. आज एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि वह उपराष्ट्रपति बन सकते थे, चर्चा भी हो रही थी, लेकिन लालू यादव ने इसमें रोड़े अटका दिए। इसके बाद भी रघुवंश बाबू जिंदगी भर लालू यादव के पीठ पीछे खड़े रहे। सामाजिक न्याय का मसीहा जो भी बने, रघुवंश बाबू ने बिना बाज़ा बजाए उसके लिए काम किया, निर्जन में उपेक्षित पड़े ब्रह्म बाबा की तरह। जिस तरह आम मंदिरों में विभिन्न देवी देवताओं का परिवार या दरबार होता है लेकिन ब्रह्म बाबा के स्थान पर उनके परिवार या कुल का कोई नहीं होता, उसी तरह रघुवंश बाबू ने भी राजनीति में कभी परिवारवाद को बढ़ावा नहीं दिया। हा, यह बात जरूर कही जाएगी कि वे एक ऐसे आदमी के अनुगामी बने रहे, जिसने परिवारवाद के आगे सोचा ही नहीं। जब जिंदगी के कुछ घंटे शेष थे तब उन्होंने उससे अलग होने का वह फैसला किया, जो बहुत पहले कर लेना चाहिए था।

ऐसे ही एक और जन नेता थे, भाकपा माले के महेंद्र सिंह। झारखंड के गिरिडीह जिले की बगोदर सीट से जीतते थे। झारखंड के पहले विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी उन्हें सम्पूर्ण विपक्ष कहते थे, जबकि विधानसभा में वे माले के इकलौते विधायक थे।

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