बिहार की चुनाव डायरी 1

बिहार में चुनाव में सबकी दिलचस्पी रहती है। इस बार भी है। साक्षात्कार आ रहे हैं, मीमांसा हो रही है, गठबंधन और हार-जीत के पूर्वानुमान लगाए जा रहे हैं।

पिछले दिनों दो घटनाएं नोट करने लायक हुईं। महेश भट्ट की मूवी सड़क 2 का ट्रेलर रिलीज हुआ और इसे एक करोड़ 20 लाख लोगों ने ऑनलाइन डिस्लाइक किया। यह दुनिया भर में नापसंदगी का दूसरा सबसे बड़ा उदाहरण था। उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात की और उसे भी लाइक से अधिक डिस्लाइक किया गया। इन दोनों ट्रेंड पर खूब चर्चा हुई, बहस हुईं।

इन दो उदाहरण के बाद फिर आते हैं बिहार की चुनावी चर्चा पर। विश्लेषक भाजपा, राजद, जदयू, लोजपा, हम, रालोसपा, जाप, वीआईपी के गिर्द घूम रहे हैं। यदि आभासी दुनिया में मिलने वाले समर्थन या विरोध को सच माना जाए तो बिहार की राजनीति में चर्चा #pushpampriyachoudhary और उनके दल #plurals की भी होनी चाहिए, जो कहीं दिख नहीं रही। इनके फेसबुक पेज पर 4 लाख 64 हज़ार से अधिक फॉलोवर दिख रहे हैं। पलूरल्स का डिस्ट्रिक्ट वाइज पेज भी दिख रहा है और उससे हज़ारों लोग जुड़े दिखाई दे रहे हैं। क्या किसी के साथ इतने लोगों का जुड़ना उसे चर्चा में लाने के लिए काफी नहीं?

पुष्पम प्रिया चौधरी कोरोना काल से पहले उस वक़्त चर्चा में आई थीं, जब उन्होंने पटना से छपने वाले सभी प्रमुख अखबारों में जैकेट ऐड दिया था। लेकिन उससे उनकी राजनीतिक सोच लोगों को भ्रमित कर रही थी। उसमें सीधे सीएम बनने जैसा मैसेज लोगों के बीच गया। अभी पुष्पम प्रिया का अलग-अलग जिलों से लोगों, इमारतों के साथ फोटो लगातार उनके फेसबुक पेज पर अपडेट हो रहा है, वे वहां का गौरव गान करती हैं और अब कहीं कहीं जिलाध्यक्ष और प्रत्याशी भी घोषित करने लगी हैं।

सवाल यह है कि विदेश से आकर पुष्पम प्रिया क्या बिहार में वैकल्पिक राजनीतिक मौके देना चाहती है या यह सिर्फ एक सनसनी पैदा करने का तरीका है या कुछ और, इसका सामने आना बाकी है। जो भी हो, लेकिन बिहार के इस नए राजनीतिक ट्रेंड पर भी चर्चा लायक मसाला तो है ही।

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