How Can You रोक
इस सीट पर बीजेपी (BJP) कैंडिडेट दिनेश लाल यादव (Dinesh Lal Yadav) निरहुआ (Nirahua) को 3 लाख 12 हजार 768 वोट मिले। सपा कैंडिडेट धर्मेंद्र यादव को 3 लाख 4 हजार 89 और बसपा के गु़ड्डू जमाली को 2 लाख 66 हजार 210 वोट मिले।
सपा के लोग कह रहे हैं कि बसपा (BSP) बीजेपी की बी टीम हो गई है और इनके गठबंधन ने सपा को हराया। इसके जवाब में बसपा कैंडिडेट ने कहा कि यह तो मैं भी कह सकता हूं कि सपा की वजह से बसपा हारी। आप मेरे वोट देख लीजिए कि क्या हम बीजेपी की बी टीम हैं?
पूरे चुनाव में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने रामपुर (Rampur) और आजमगढ़ से दूरी बनाए रखी, सपा दोनों सीटें हार चुकी है। 2019 के आम चुनाव में आजमगढ़ से अखिलेश यादव जीते थे जबकि रामपुर से आजम खां। दोनों 2022 में विधानसभा का चुनाव लड़े और विधायक बनने के बाद संसदीय सीट से इस्तीफा दे दिया था।
2019 का जब आम चुनाव हुआ था तो सपा प्रत्याशी अखिलेश यादव को आजमगढ़ में 6 लाख 21 हजार 578 यानी 60 फीसद वोट मिले थे। बीजेपी के निरहुआ को 3 लाख 61 हजार 704 यानी 35 पर्सेंट वोट मिले थे। बसपा ने कैंडिडेट दिया नहीं था।
इस आंकड़े के आईने में हालिया चुनाव का नतीजा देखें तो सभी पार्टियों के वोट उसे मिले हैं। अंतर सिर्फ इतना हुआ है कि इस बार बसपा ने अपने वोट शेयर ले लिया जो पिछली बार उसने अखिलेश यादव के लिए छोड़ा था। तो क्या बसपा को यह चुनाव नहीं लड़ना चाहिए था? जवाब यह है कि बसपा अपनी कुर्बानी देकर सपा को क्यों आगे बढ़ने देगी, जबकि प्रदेश में उसका मुकाबला सपा से ही तो है।
अखिलेश यादव ने बीजेपी को आजमगढ़ में रोकने की कोशिश ही नहीं की, चुनाव के बाद उनके सहयोगी सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर का यह कहना कि अखिलेश यादव को एसी कमरों से बाहर निकलना चाहिए, इसकी तसदीक कर देता है। बीजेपी किसी भी चुनाव या उपचुनाव को शिद्दत से लड़ रही है। उसके सारे प्रमुख नेता वहां कैंप करते हैं और पार्टी के पक्ष में माहौल बनाते हैं।
दूसरी तरफ, सपा प्रमुख अखिलेश यादव अब भी मुस्लिम और यादव वोटों के समीकरण में उलझे हुए हैं। उन्हें अभी तक यह समझ में ही नहीं आ रहा कि अब यूपी में जातिवादी और परिवारवादी राजनीति के दिन खत्म हो गए। सरकार की इतनी कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं, और बिना धार्मिक और जातीय भेदभाव के पात्रों तक पहुंच रही हैं तो कोई सपा का झंडा कब तक खाली पेट उठाएगा?
दूसरी बात यह कि समाजवादी पार्टी परिवार से आगे बढ़ नहीं रही है। धर्मेंद्र यादव अखिलेश यादव के चचेरे भाई हैं और बदायूं से सपा के टिकट पर सांसद रह चुके हैं। अब जहां सीट खाली होगी वहां धर्मेंद्र यादव ही लड़ेंगे तो आम सपा कार्यकर्ता किस उम्मीद में पार्टी के लिए काम करेगा? हाल ही में हुए एमएलसी चुनाव के दौरान रामपुर से एक आवाज उठी थी कि अब्दुल क्या सिर्फ दरी बिछाने और जेल जाने के लिए है? सपा प्रमुख इस वाक्य का मतलब शायद अभी तक नहीं समझे हैं।
हाल के दिनों में अग्निपथ योजना (Agnipath scheme) का विरोध हुआ। आजमगढ़ को भी देखा जाए तो बुनकरी के अलावा यहां कोई उद्योग नहीं है। दूसरे पिछड़े इलाकों की तरह यहां भी बेरोजगार युवा ट्यूशन पढ़ा सकते हैं। सरकारी नौकरी के लिए यहां भी बड़ी संख्या में लोग फौज में जाने की तैयारी करते हैं। इसके बावजूद बीजेपी यहां से नहीं हारी तो समाजवादी पार्टी को अपने भीतर झांकना ही होगा।
कुछ महीने पहले जब यूपी विधानसभा चुनाव हो रहे थे तब बलिया जिले में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का युवाओं ने इसलिए विरोध किया था कि फौज की बहाली रोकी क्यों गई है? इसके बावजूद बीजेपी विधानसभा चुनाव जीती थी और दोबारा सरकार बनाने में सफल रही थी। अभी अग्निपथ योजना के बावजूद लोकसभा की तीन सीटों के लिए हुए उपचुनाव में बीजेपी दो सीटें रामपुर और आजमगढ़ जीत गई।
विधानसभा चुनाव की बात करें तो अखिलेश यादव का कैंपेन अफवाहों पर चल रहा था। मतदान नजदीक आते ही यह खबर फैलाई गई (इसमें मीडियाकर्मी भी शामिल थे) कि कुछ सीनियर आईएएस अखिलेश यादव को गुड मॉर्निंग का मेसेज भेज रहे हैं। फिर इसका मतलब यह बताया गया कि आईएएस बहुत समझदार होते हैं और वे रिजल्ट की हवा भांप लेते हैं।
कई नामचीन पत्रकारों ने इसे अपने सोशल मीडिया हैंडल से भी शेयर किया। फिर अयोध्या में बोर्ड को हरे रंग में रंगवाया गया कि वहां के अधिकारियों ने हवा भांप ली है और इसलिए बोर्ड का रंग चेंज करवा दिया गया। ये टोटके चलते रहे और सपा चुनाव हार गई। जैसा पहले से तय था अखिलेश यादव ने ईवीएम को दोषी ठहरा दिया था। यहां याद दिलाना जरूरी है कि सपा सरकारें पत्रकारों पर मेहरबान रहती थीं और उनके लिए भूखंड समेत तमाम सुविधाएं लेकर आती थीं।
अभी सपा जिस स्टाइल में चल रही है, उसमें उसे किसी दूसरे से यह पूछने की जरूरत नहीं है कि How Can You रोक, पार्टी खुद ही अपनी राह रोक कर खड़ी है।
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