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Showing posts from July, 2022

कहे घाघ कुछ होनी होई

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दिन के बद्दर, रात निबद्दर बहे पुरवइया झब्बर-झब्बर कहे घाघ कुछ होनी होई कुआं के पानी धोबी धोई। यह कहावत सावन के महीने के लिए है। दिन में आकाश बादलों से ढंका रहे और रात में आसमान साफ रहे, साथ में पुरवा हवा ललकारे, तो ये अकाल के लक्षण हैं। ताल तलैया सूख जाएंगे और धोबी को कपड़े धोने के लिए कुएं के पानी का इस्तेमाल करना पड़ेगा। इसको सपोर्ट करती दूसरी कहावत है दिन में बदरी, रात में ओस कहे घाघ बरखा सौ कोस इसका अर्थ भी वही है कि दिन में बादल छाए रहे और रात में आसमान साफ हो तो सौ कोस यानी दूर-दूर तक बारिश के आसार नहीं हैं। सावन में पुरुवा हवा कजरी गीतों में ही अच्छी लगती है। हकीकत में सावन में पुरवइया अकाल का संदेश लाती है। सावन मास बहे पुरवइया बरधा बेच ले आव गईया यानी सावन के महीने में लगातार पुरुवा हवा चले तो खेती में कुछ नहीं बचता। इसलिए वैकल्पिक इंतज़ाम कर लेना चाहिए। घर में पैसे न हों तो बैलों को बेच कर गाय खरीद लेनी चाहिए, ताकि साल भर उसका दूध बेचकर परिवार पाला जा सके।

क्या उपराष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी कास्ट और क्लास में उलझ रही है?

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एनडीए की ओर से बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) उपराष्ट्रपति (Vice President) पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया है। कहने के लिए धनखड़ एनडीए (NDA) कैंडिडेट हैं, लेकिन इस गठबंधन का सबसे बड़ा धड़ा होने की वजह से बीजेपी की पसंद और नीतियां ही आमतौर पर चलती हैं। यह चर्चा आम है कि जाट (Jat) वोटरों को साधने के लिए (जो कई कारणों से उससे खफा हैं) भी बीजेपी (BJP) ने धनखड़ को प्रत्याशी बनाया है। हालांकि सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या बीजेपी जिसने यूपी का चुनाव क्लास की राजनीति करके जीता था, अगले साल राजस्थान जीतने के लिए कास्ट की राजनीति कर रही है? लोकसभा के अगले चुनाव के बाद हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव हैं। बीजेपी वहां सत्ता में है लेकिन उसे जाट बेस्ड जननायक जनता पार्टी का सहारा लेना पड़ा है। क्या बीजेपी अगले चुनाव में सिर्फ जेजेपी के सहारे नहीं रहना चाहती? इसी साल यूपी विधानसभा के लिए चुनाव हुआ। जाट वोटरों की नाराजगी दिख रही थी, लेकिन बीजेपी ने जाटों के प्रभाव वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी शानदार प्रदर्शन किया, राज्य में सरकार तो बनी ही। बीजेपी की जीत के कई कारण थे, जिसने बड़े...

शताब्दी वर्ष में दिल्ली यूनिवर्सिटी

इस साल दिल्ल्ली यूनिवर्सिटी का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। कैरियर के लिहाज से इसे बेहतरीन विश्वविद्यालय माना जाता है। शानदार इमारतें और कैम्प्स प्लेसमेंट यहां की खासियत है। आला दर्जे के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं और खेल प्रतिस्पर्धाएं भी। फैशन का ट्रेंड भी यहां से सेट होता है। दिल्ली 1911 में देश की राजधानी बन गई थी। उसके बाद 11 साल और लगे विश्वविद्यालय बनने में। फ़र्ज़ करिए कि अगर राष्ट्रीय राजधानी कलकत्ता ही रहती तो यहां क्या यूनिवर्सिटी बनती? यह जानना भी दिलचस्प रहेगा कि दिल्ली की मूल आबादी में पढ़ने-लिखने को लेकर कितनी स्वाभाविक ललक थी और है? काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू की स्थापना बनारस में 1916 में हो चुकी थी। डीयू से छह साल पहले। यूपी का पहला विश्वविद्यालय इलाहाबाद यूनिवर्सिटी है, जो 1887 में स्थापित हुआ था। बिहार की बात करें तो यहां पांचवीं शताब्दी में नालंदा और आठवीं-नौंवी शताब्दी में विक्रमशिला विश्वविद्यालय थे। आधुनिक काल में 1917 में पटना यूनिवर्सिटी की स्थापना हो चुकी थी, डीयू से पांच साल पहले। तो क्या यूनिवर्सिटी की जरूरत तब महसूस की गई, जब लगा कि राजधानी बनन...