क्या उपराष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी कास्ट और क्लास में उलझ रही है?


एनडीए की ओर से बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) उपराष्ट्रपति (Vice President) पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया है। कहने के लिए धनखड़ एनडीए (NDA) कैंडिडेट हैं, लेकिन इस गठबंधन का सबसे बड़ा धड़ा होने की वजह से बीजेपी की पसंद और नीतियां ही आमतौर पर चलती हैं। यह चर्चा आम है कि जाट (Jat) वोटरों को साधने के लिए (जो कई कारणों से उससे खफा हैं) भी बीजेपी (BJP) ने धनखड़ को प्रत्याशी बनाया है। हालांकि सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या बीजेपी जिसने यूपी का चुनाव क्लास की राजनीति करके जीता था, अगले साल राजस्थान जीतने के लिए कास्ट की राजनीति कर रही है? लोकसभा के अगले चुनाव के बाद हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव हैं। बीजेपी वहां सत्ता में है लेकिन उसे जाट बेस्ड जननायक जनता पार्टी का सहारा लेना पड़ा है। क्या बीजेपी अगले चुनाव में सिर्फ जेजेपी के सहारे नहीं रहना चाहती?

इसी साल यूपी विधानसभा के लिए चुनाव हुआ। जाट वोटरों की नाराजगी दिख रही थी, लेकिन बीजेपी ने जाटों के प्रभाव वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी शानदार प्रदर्शन किया, राज्य में सरकार तो बनी ही। बीजेपी की जीत के कई कारण थे, जिसने बड़े वर्ग को प्रभावित किया। उसमें आयुष्मान योजना, वन रैंक-वन पेंशन (One Rank-One Pension) , प्रधानमंत्री आवास योजना, घर-घर शौचालय और गरीबों को मुफ्त राशन आदि थे। इन योजनाओं ने इसके लाभार्थियों का एक क्लास तैयार किया, जिसने बिना हिचक बीजेपी को वोट किया। अब बीजेपी को इस क्लास की राजनीति पर संशय क्यों हो रहा है? 

देवीलाल के करीब थे जगदीप धनखड़

हरियाणा पंजाब से कटकर बना हुआ राज्य है और यहां जाट प्रभावशाली हैं। बीजेपी ने जब 2014 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मनोहरलाल (Manoharlal) को मुख्यमंत्री बनाया, तभी से अधिकतर जाट बीजेपी से नाराज हो गए। 

यह नाराजगी 2019 के राज्य विधानसभा चुनाव में भी दिखी, जब पार्टी ने करीब 20 जाट उम्मीदवार बनाए, लेकिन उनमें से एक चौथाई ही जीते। हारने वालों में कैप्टन अभिमन्यु, ओपी धनखड़, बबीता फोगाट और सोनाली फोगाट जैसे बड़े चेहरे और सिलेब्रिटी भी थे। 

यूपी और हरियाणा से लगती दिल्ली की सीमाओं पर लंबा किसान आंदोलन हुआ, जिसे अधिकतर जाटों ने खुलकर समर्थन दिया था। क्या बीजेपी यह डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश में है? 

राजस्थान के सीकर, चुरू, झुंझनू, भरतपुर, धौलपुर, अलवर और हनुमानगढ़ में ही नहीं, बल्कि हरियाणा के सिरसा, हिसार, कैथल, फतेहाबाद, जींद, रोहतक, झज्जर, चरखी दादरी, सोनीपत और भिवानी में भी जाट संगठित और प्रभावशाली हैं। क्या पार्टी की नीतियों से उलट सार्वजनिक रूप से राय रखने वाले मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक को बैलेंस करने के लिए भी बीजेपी ने यह दांव चला है?

कल ही बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे (Bundelkhand Expresway)का उद्घाटन हुआ। 296 किमी लंबा एक्सप्रेसवे महज 28 महीने में तैयार कर लिया गया। कई नैशनल हाइवे पर जोरशोर से काम हो रहा है और उसके बेहतर नतीजे आ रहे हैं। देश में कोरोना वैक्सीन (Covid vaccine) लगाने का आंकड़ा 200 करोड़ थोड़ी देर पहले ही पार हुआ है, फिर भी उपराष्ट्रपति जैसे पद के लिए कैंडिडेट चयन में सिर्फ जाति और एक राज्य का चुनाव यदि प्रभावी है तो इसे लोकतंत्र के लिए स्वस्थ नहीं माना जा सकता। फिर यह भी सवाल उठ सकता है कि राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी क्या 2024 में होने वाले झारखंड और ओडिशा विधानसभा चुनाव के लिए है?

हरियाणा में किसी भी समय पंचायत चुनाव की घोषणा हो सकती है। नगर निगम चुनाव भी होने वाले हैं। मिशन-2024 पर फोकस करते हुए फरीदाबाद के सूरजकुंड में प्रदेश भाजपा का प्रशिक्षण शिविर चल रहा है, जिसका आज आखिरी दिन है। शिविर के पहले दिन सरकार की नीतियों और कार्य को जनता तक पहुंचाने की अपील की गई। यह भी कहा गया कि जनता से जुड़े मुद्दों को लगातार उठाया जाए। सीएम और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओपी धनखड़ समेत तमाम वक्ताओं ने कहा कि हम ऐसे मुद्दों को ही उठाकर सरकार में आए हैं और इसे छोड़ नहीं सकते। पार्टी नेताओं से खुद का विकास करने को भी कहा गया।

बीजेपी एक राष्ट्रीय पार्टी है और उसका अधिकतर फोकस इस बात पर है कि कांग्रेस (Congress) का राष्ट्रीय दल का स्टेटस न रहने पाए। पार्टी अभी लंबे समय तक सरकार चलाने की प्लानिंग के साथ काम कर रही है। ऐसे में यह मानना थोड़ा कठिन लगता है कि वह सिर्फ विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर शीर्ष संवैधानिक पदों पर कैंडिडेट तय कर रही हो। 

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में जब एनडीए सत्ता में था तब राष्ट्रपति पद के लिए डॉ. अब्दुल कलाम को कैंडिडेट बनाया गया था। इससे आम मुसलमान वोट तो बीजेपी के साथ जुड़ा नहीं। हाल ही में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने मतदान के बाद जो आंतरिक सर्वे कराया, उसमें माना गया था कि उसे मुस्लिम वोट नहीं मिले हैं। उपराष्ट्रपति पूरे देश का होता है किसी जाति का नेता नहीं। बीजेपी की रणनीति यदि इस तरह वोटरों की साधने की है तो उसके नतीजे लंबे समय में प्रतिकूल ही होंगे। 

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