शताब्दी वर्ष में दिल्ली यूनिवर्सिटी

इस साल दिल्ल्ली यूनिवर्सिटी का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। कैरियर के लिहाज से इसे बेहतरीन विश्वविद्यालय माना जाता है। शानदार इमारतें और कैम्प्स प्लेसमेंट यहां की खासियत है। आला दर्जे के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं और खेल प्रतिस्पर्धाएं भी। फैशन का ट्रेंड भी यहां से सेट होता है।

दिल्ली 1911 में देश की राजधानी बन गई थी। उसके बाद 11 साल और लगे विश्वविद्यालय बनने में। फ़र्ज़ करिए कि अगर राष्ट्रीय राजधानी कलकत्ता ही रहती तो यहां क्या यूनिवर्सिटी बनती? यह जानना भी दिलचस्प रहेगा कि दिल्ली की मूल आबादी में पढ़ने-लिखने को लेकर कितनी स्वाभाविक ललक थी और है?

काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू की स्थापना बनारस में 1916 में हो चुकी थी। डीयू से छह साल पहले। यूपी का पहला विश्वविद्यालय इलाहाबाद यूनिवर्सिटी है, जो 1887 में स्थापित हुआ था। बिहार की बात करें तो यहां पांचवीं शताब्दी में नालंदा और आठवीं-नौंवी शताब्दी में विक्रमशिला विश्वविद्यालय थे। आधुनिक काल में 1917 में पटना यूनिवर्सिटी की स्थापना हो चुकी थी, डीयू से पांच साल पहले।

तो क्या यूनिवर्सिटी की जरूरत तब महसूस की गई, जब लगा कि राजधानी बनने के बाद अब बाहर से भी लोग आकर रहेंगे और वे अध्ययन का सेंटर तलाशेंगे। 2008-09 में अखबारों में एक रिपोर्ट छपी थी कि दिल्ली की मूल आबादी का 20 फीसदी हिस्सा ही ग्रेजुएट है।

जैसा मैंने शुरू में कहा कि डीयू की खासियत कैंपस प्लेसमेंट की सुविधा भी है। यही सुविधा इसमें दाखिले की होड़ मचवाती है। बेहतरीन स्टूडेंट भी निकलते हैं यहां से, लेकिन मेट्रो-बस में इसके ऐसे विद्यार्थी भी मिल जाते हैं, जो राज्यसभा और विधानसभा को एक ही समझते हैं। किसी पिछड़े इलाके के शिक्षण संस्थान से अधिक यहां छात्रसंघ चुनाव में जातीय वर्चस्व की लड़ाई दिखती है। दूसरे प्रदेशों (जिसे यहां की मूल आबादी बाहरी राज्य कहती है) से आने वाले छात्र किसी न किसी जातीय गुट के साथ जुड़ कर तेरे को-मेरे को करने लगते हैं।

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