कहे घाघ कुछ होनी होई

दिन के बद्दर, रात निबद्दर बहे पुरवइया झब्बर-झब्बर कहे घाघ कुछ होनी होई कुआं के पानी धोबी धोई। यह कहावत सावन के महीने के लिए है। दिन में आकाश बादलों से ढंका रहे और रात में आसमान साफ रहे, साथ में पुरवा हवा ललकारे, तो ये अकाल के लक्षण हैं। ताल तलैया सूख जाएंगे और धोबी को कपड़े धोने के लिए कुएं के पानी का इस्तेमाल करना पड़ेगा। इसको सपोर्ट करती दूसरी कहावत है दिन में बदरी, रात में ओस कहे घाघ बरखा सौ कोस इसका अर्थ भी वही है कि दिन में बादल छाए रहे और रात में आसमान साफ हो तो सौ कोस यानी दूर-दूर तक बारिश के आसार नहीं हैं। सावन में पुरुवा हवा कजरी गीतों में ही अच्छी लगती है। हकीकत में सावन में पुरवइया अकाल का संदेश लाती है। सावन मास बहे पुरवइया बरधा बेच ले आव गईया यानी सावन के महीने में लगातार पुरुवा हवा चले तो खेती में कुछ नहीं बचता। इसलिए वैकल्पिक इंतज़ाम कर लेना चाहिए। घर में पैसे न हों तो बैलों को बेच कर गाय खरीद लेनी चाहिए, ताकि साल भर उसका दूध बेचकर परिवार पाला जा सके।

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