विरोधी दलों की बारात का दूल्हा कौन?
अभी जो सीन बन रहा है, उसमें विपक्ष में 3 केंद्र दिख रहे हैं। एक नीतीश कुमार, दूसरे अरविंद केजरीवाल और तीसरे राहुल गांधी।
नीतीश कुमार कह रहे हैं कि वह विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री बनना उनका लक्ष्य नहीं है। लेकिन अगर वह प्रधानमंत्री की रेस में शामिल नहीं होंगे तो तेजस्वी यादव का क्या होगा? राजद ने क्या नीतीश कुमार को बिहार का सीएम बनाए रखने के लिए जदयू से गठबंधन किया है? इसका जवाब नहीं है। तो नीतीश कुमार कुछ भी कहें, उन्हें इस रेस में शामिल होना ही पड़ेगा, नहीं तो राजद उन्हें बहुत दिनों तक सपोर्ट नहीं करेगा।
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की दो राज्यों, दिल्ली और पंजाब, में सरकार है। बाकी जितने क्षेत्रीय दल हैं, वे पक्ष में हों या विपक्ष में, एक ही राज्य तक सिमटे हुए हैं। कुछ दिनों पहले से अरविंद केजरीवाल देश की बात करने लगे हैं। हरियाणा के हिसार से उनका देश को नम्बर वन बनाने का अभियान शुरू हो चुका है। नरेंद्र मोदी के खिलाफ वह 2014 में बनारस से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। अति आकांक्षा भी उनके अंदर है। तो वह खुद को पीएम की दौड़ से कैसे बाहर कर लेंगे?
इसके बाद हैं राहुल गांधी। कन्याकुमारी से उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा शुरू की है। उनके निशाने पर मोदी सरकार है। राहुल गांधी वक्ता कमज़ोर हैं, परफॉर्मर पुअर हैं, लेकिन पार्टी पर उनकी और उनके परिवार की पकड़ मजबूत है। उनके नेतृत्व को दल के अंदर से चुनौती नहीं मिलनेवाली। वह प्रधानमंत्री बनने की रेस से कैसे अलग हो सकते हैं?
1970 के दशक की राजनीति की पुनरावृत्ति हो रही है। विपक्ष बड़ा दिख रहा है, लेकिन बंटा हुआ है। जब तक एक चेहरा विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार नहीं बनता, मोदी को पछाड़ना नामुमकिन है।
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