अतीक बना अतीत


अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की जब हत्या की गई तो वे मीडिया को बाइट दे रहे थे। इसी दौरान किसी ने सवाल किया कि बेटे के जनाजे में नहीं गए? अतीक ने जवाब दिया  कि नहीं ले गए तो नहीं गए। ये उसकी जुबान से निकले आखिरी शब्द थे। इसके बाद तत्काल नजदीक से उसके सिर में गोली मारी गई। इतने नजदीक से कि उसकी पगड़ी हवा में उछल गई और अतीक नीचे गिर गया। अतीक के दाहिने हाथ में हथकड़ी थी और उसी के दूसरे छोर से अशरफ का बायां हाथ बंधा था। अतीक गिरा और उसके वजन से अशरफ भी, इसके बाद बर्स्ट फायरिंग हुई और अतीक और अशरफ अतीत हो गए। हत्या के तत्काल बाद हत्यारों ने हाथ उठाकर सरेंडर पकर दिया और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उस वक्त अशरफ कह रहा था कि मेन बात है कि गुड्डू मुस्लिम ....

यूपी में 1989 का विधानसभा चुनाव था। इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर अतीक और कभी उसके आपराधिक गुरु रहे चांद बाबा आमने--सामने थे। वोटिंग हो चुकी थी, नतीजे आने ही वाले थे। इलाहाबाद की आपराधिक संस्कृति के मुताबिक चांद बाबा बमबाज था। उसे सूचना मिली थी कि अतीक के लोग उसके इलाके में हैं। गैंगवॉर हुई और जब बम के धुएं का गुबर छंटा तो चांद बाबा की लाश जमीन पर पड़ी हुई थी। इस मर्डर के बहाने अतीक ने खुद को लॉन्च कर लिया था। जब नतीजे आए तो वह विधायक भी बन गया था।

2004 में लोकसभा चुनाव हुए। लगातार विधानसभा चुनाव जीत रहे अतीक ने लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत भी गया। इस वजह से इलाहाबाद पश्चिमी सीट खाली हो गई। अतीक ने अपने भाई अशरफ को नवंबर 2004 मे उपचुनाव लड़ाया और बसपा ने राजू पाल को। अशरफ चुनाव हार गया। जनवरी 2005 में राजू पाल की हत्या कर दी गई। अतीक और अशरफ समेत कई लोगों को आरोपी बनाया गया था। इस हत्याकांड के बाद अतीक ने अशरफ को लॉन्च किया था।

2023 का समय आया। 24 फरवरी को राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल और उसके दो सुरक्षाकर्मियों की हत्या कर दी गई। सुरक्षाकर्मी यूपी पुलिस के थे। दिनदहाड़े मारा गया, गोली चलाई गई और बम फेंके गए। सीसीटीवी कैमरे वाले इलाके में हत्यारों ने चेहरों को छुपाना भी जरूरी नहीं समझा। वे खौफ पैदा करना चाहते थे। कैमरे में अतीक का बेटा असद दिखा था। इस हत्याकांड के बाद अतीक ने अपने तीसरे बेटे असद को लॉन्च किया लेकिन यह कुछ दिनों में ही खत्म हो गया। 13 अप्रैल को असद और गुलाम मोहम्मद पुलिस मुठभेड़ में झांसी में मारे गए। चर्चा रही कि वे दोनों साबरमती जेल से झांसी के रास्ते प्रयागराज लाए जा रहे अतीक अहमदे के काफिले पर हमला कर उसे छुड़ाने वाले थे।

1989 में जब अतीक अहमद ने विधानसभा का पहला चुनाव जीता, यह वही दौर था, जब सामाजिक न्याय की आड़ में अपराधी राजनीति में आ रहे थे। वे अपने आकाओं के लिए बूथ लूटते-लूटते समझ चुके थे कि जब वे दूसरों के लिए बूथ लूट सकते हैं तो खुद के लिए क्यों नहीं? यूपी-बिहार दोनों जगहों पर बड़ी संख्या में अपराधी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए थे। यह सिलसिला कई चुनाव तक चलता रहा। यह वही दौर था जब देश लोकसभा का मध्यावधि चुनाव झेल रहा था।

अतीक अहमद का खौफ इतना था कि 2012 में उसने चुनाव लड़ने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में बेल के लिए पिटिशन लगाई तो 10 जजों ने केस की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। 11वें जज ने सुनवाई की और अतीक अहमद को जमानत मिल गई थी।

पुलिस कस्टडी में हत्या स्टेट की विफलता है, इसमें कोई संदेह नहीं है। तीन अपराधी जो अलग-अलग शहरों के हैं तीनों प्रयागराज के एक होटल में एक कमरे में रुकते हैं और पुलिस और मीडिया के सामने मर्डर करते हैं तो जाहिर है कि यह सामान्य गुस्सा नहीं है। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, अतीक ने पुलिस को पाकिस्तान के रास्ते ड्रोन से हथियार लाने की बात कबूली थी। अगर यह बात सच थी तो फिर तो इंटनैशनल साजिश का राज अतीक के साथ ही खत्म हो गया। स्थानीय भू माफिया कनेक्शन की अटकलें भी इस डबल मर्डर के साथ खत्म हो गईं। अतीक और अशरफ की लाशों को पोस्टमॉर्टम से तो कोई राज खुलनेवाला नहीं है।




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