राजस्थान से हरियाणा का मेवात क्षेत्र साधेगी बीजेपी!

 

पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने सबको चौंकाया, वैसे ही यदि पार्टी पहली  बार विधायक बनीं नौक्षम चौधरी को मंत्री बना दे या कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपे तो भले यह चौंकाने वाला फैसला लगे, लेकिन मेवात इलाके में हिंदू वोटों को एकजुट रखने वाली स्ट्रैटिजी की तरह देखा जाना चाहिए। मेवात के राजस्थान में पड़ने वाले हिस्से की कामां सीट के बहाने बीजेपी पहले पूरे मेवात इलाके और हरियाणा नौक्षम का राजनीतिक इस्तेमाल कर सकती है।

2019 के विधानसभा चुनाव में नौक्षम चौधरी नूंह जिले की पुन्हाना सीट से चुनाव लड़ी थीं और हार गई थीं। यह उनका पैतृक इलाका है। बीजेपी ने पुन्हाना से सटी राजस्थान की कामां सीट पर नौक्षम पर दांव लगाया और पार्टी की यह चाल सफल रही। कामां का यह संदेश नूंह तक न पहुंचे ऐसा नहीं हो सकता। नौक्षम दिल्ली यूनिवर्सिटी के अलावा विदेश में भी पढ़ी-लिखी हैं, फर्राटेदार इंग्लिश बोल सकती हैं। प्रभावशाली व्यक्तिव है। पार्टी उन्हें कांग्रेस की प्रियंका गांधी के मुकाबले लॉन्च भी कर सकती है।

नौक्षम चौधरी पढ़ी- लिखी हैं और एससी हैं। बीजेपी के पास यह एक ऐसा ट्रंप कार्ड होगा जो लोकसभा के साथ-साथ मेवात समेत हरियाणा विधानसभा चुनाव में वह इस्तेमाल करना चाहेगी। हरियाणा के नूंह जिले में जिसका नाम पहले मेवात था, से अधिकतर सवर्ण हिंदू पलायन कर चुके हैं। यहां एससी वोटर का पलायन कम हुआ है और बीजेपी की नजर इस पर होगी कि इस वोट का बंटवारा न हो। हिंदू-मुस्लिम आबादी का अनुपात ऐसा है कि सौ फीसदी हिंदू वोट भी किसी को  मिले तो भी वह विधानसभा की सीट नहीं जीत सकता है, लेकिन लोकसभा चुनाव में एकतरफा जाने पर यह वोट पर्सेंट सुधार सकता है। इसी साल 31 अगस्त को स्थानीय नल्हड़ मंदिर में हुए बवाल के बाद यहां वोटों का ध्रुवीकरण भी होगा। हालांकि यह किसके पक्ष में जाएगा, यह तब पता चलेगा।

कामां सीटका कम से कम 25 साल का रेकॉर्ड है कि यहां से जिस पार्टी का विधायक बनता है, प्रदेश में उसी की सरकार बनती है।  मेवात इलाके की कामां सीट बीजेपी पहली बार जीती हो, ऐसा नहीं है। इससे पहले जब वसुंधरा राजे दो बार सीएम बनीं तब यहां से क्रमश: बीजेपी के मदन मोहन और जगत सिंह चुनाव जीते थे। लेकिन इस बार की जीत पार्टी के लिहाज से महत्वपूर्ण है। बीजेपी वहां दो मुस्लिम उम्मीदवारों की लड़ाई में जीती है। यहां कांग्रेस से प्रदेश की मंत्री जाहिदा खान थीं और निर्दलीय मुख्तार अहमद। जाहिदा खान का मुसलमानों में ही विरोध हो रहा था और उन्होंने अपना स्वतंत्र उम्मीदवार उतारा। मुख्तार को कितना जनसमर्थन था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जाहिदा खान तीसरे नंबर पर चली गईं। इस सीट का सबक कांग्रेस के लिए भी है कि उसके मंत्री अपने क्षेत्र में कितने अलोकप्रिय हो गए थे।

हरियाणा के नूंह जिले की तीनों विधानसभा सीटें इस समय कांग्रेस के पास है। 2014 के विधानसभा चुनाव में यहां की पुन्हाना सीट निर्दलीय रहीश खान ने जीती थी, जबकि नूंह और फिरोजपुर झिरका से जाकिर हुसैन और नसीम अहमद इनेलो के टिकट पर विधायक बने थे। बाद में मनोहर सरकार ने रहीश खान को वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बनाकर राज्यमंत्री का दर्जा दिया और वह बीजेपी में शामिल हो गए थे। जाकिर हुसैन और नसीम अहमद भी बीजेपी में चले गए। बीजेपी इस क्षेत्र को लेकर कितनी संजीदा है, इसका पता इसी से लग जाता है। पार्टी ने जाकिर और नसीम को 2019 के विधानसभा चुनाव में इन्ही सीटों पर उतारा, लेकिन ये दोनों चुनाव हार गए थे। नौक्षम बीजेपी के लिए कितना महत्व रखती हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीजेपी ने जिस रहीश खान को वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बनाया, 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्हें न उतारकर नए चेहरे नौक्षम चौधरी को टिकट दे दिया। रहीश भी मैदान में उतर गए और दूसरे नंबर पर रहे। नौक्षम पुन्हाना में तीसरे नंबर पर रहीं, लेकिन इसके बाद भी उन्हें कामां सीट से टिकट मिल गया। 
 
हालांकि, नौक्षम की वजह से बीजेपी में भरतपुर संसदीय क्षेत्र की राजनीति करने वाले सशंकित हो सकते हैं क्योंकि भरतपुर लोकसभा सीट एससी रिजर्व है और पार्टी वहां भी नौक्षम का इस्तेमाल कर सकती है।   

फोटो : गूगल से 


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