बीजेपी-जेजेपी : चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों
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11 मार्च को जब पीएम ने गुड़गांव में द्वारका एक्सप्रेसवे का उद्घाटन किया, उस दौरान दुष्यंत चौटाला भी मोजूद थे |
इसमें चौंकने जैसा कुछ नहीं है
जिन्हें यह सब कुछ अप्रत्याशित लग रहा हो, उन्हें 2 मार्च का तत्कालीन सीएम मनोहरलाल का बयान पढ़ या देख लेना चाहिए। मनोहरलाल ने उस दिन गुड़गांव से प्रदेश के सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी दफ्तर का उद्घाटन किया और वर्चुअली इससे जुड़े थे। इस दौरान उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि भाजपा हरियाणा कि दसों सीटें फिर जीतेगी। हरियाणा में लोकसभा की दस सीटें हैं। उसी समय यह साफ हो गया था कि यह गठबंधन चलने वाला नहीं है। मनोहरलाल यह भी कहते कि हम दसों सीटें जीतेंगे और इसके बाद गठबंधन टूटता तो वह अप्रत्याशित होता। यह घटनाक्रम तो जरा भी हैरान करने वाला नहीं है। कुछ दिनों पहले पलवल में दुष्यंत चौटाला की सभा हुई थी। उसमें उन्होंने कहा था कि गठबंधन न हुआ तो सभी दसों सीटों पर लड़ने को तेयार रहें।
विरोध में लड़े थे, बाद में एक हुए
जेजेपी और बीजेपी ने 2019 का विधानसभा चुनाव एक दूसरे के विरोध में लड़ा था और सीटों के अंकगणित को साधने के लिए दोनों ने अलायंस किया था। जेजेपी ने अपने वोटरों से वादा किया था कि यदि पार्टी पावर में आती है तो निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 फीसदी आरक्षण स्थानीय युवाओं को दिया जाएगा। यह वादा पूरा हुआ, लेकिन अभी मामला सुप्रीम कोर्ट में है। इस मसले पर जेजेपी को वोट मिलते लेकिन बीजेपी जो राष्ट्रीय पार्टी है और जिसे दूसरे राज्यों में भी चुनाव लड़ना है, वह बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बंगाल में अपने वोटरों को क्या समझाती? दूसरी ओर, यदि रिजर्वेशन का लाभ स्थानीय लोगों को न मिले तो जेजेपीअपने मतदाताओं को कैसे बांध कर रख पाती? जब कोरोना काल में लॉकडाउन था, उस समय हरियाणा में बड़े पैमाने पर शराब तस्करी हुई। हरियाणा में जहरीली शराब से कई लोगों की जान गई। एक्साइज डिपार्टमेंट दुष्यंत चौटाला के पास था। बीजेपी चुनाव में इन पर जवाब देने मे फंस जाती, ऐसे में उसने गठबंधन से किनारा करना ही बेहतर समझा होगा। कहा जा रहा है कि जेजेपी लोकसभा की दो सीटें चाहती थी, लेकिन बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं थी।
एक पॉइंट और है
बीजेपी और जेजेपी अगर अलग-अलग लोकसभा चुनाव लड़ें तो दोनों फायदे में रह सकते हैं। इसके लिए पहले यह समझना होगा कि दोनों का दुश्मन नंबर वन कौन है। फिलहाल जेजेपी के लिए आईएनएलडी और बीजेपी के लिए कांग्रेस। बीजेपी और जेजेपी जब अलग-अलग चुनाव लड़ेंगी, तब जेजेपी जाट वोटों की सबसे बड़ी दावेदार होगी। बीजेपी के साथ रहते हुए जेजेपी उतना जाट वोट हासिल नहीं कर पाती। जैसे ही वह जाट वोटों की इकलौती हकदार होगी, आईएनएलडी की राजनीति समाप्त हो जाएगी। आईएनएलडी फिलहाल असितत्व के संकट से जूझ रही है। जिस पार्टी ने प्रदेश में हुकूमत की हो, फिलहाल उसका एक विधायक है। चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने, पलवल के 52 पालों के प्रधान अरुण जेलदार को अयोध्या में रामलला पूजन समारोह में 15 मुख्य जजमानों में शामिल करने और जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाए जाने के बाद भी बीजेपी हरियाणा के जाट वोटरों को साध नहीं सकी है। 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कई जाट उम्मीदवार उतारे, जिनमें अधिकतर हार गए थे। तब से आज तक प्रदेश में हालात कमोबेश वैसे ही हैं। कांग्रेस का हरियाणा में कई साल से संगठन नहीं है फिर भी वह प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल है। ऐसे में देश भर के साथ-साथ प्रदेश स्तर पर भी बीजेपी अपनी लड़ाई कांग्रेस से मान रही है। कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के लिए कुरुक्षेत्र की सीट छोड़ी हुई है, लेकिन अपनी नौ में से एक भी सीट पर उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। बीजेपी जब जेजेपी से अलग होकर लड़ती है तो कांग्रेस और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सॉलिड जाट वोट मिलने की उम्मीद टूट सकती है। दूसरी तरफ, बीजेपी को यह उम्मीद रहेगी कि वे वोटर उसके साथ होंगे, जो जेजेपी संग रहने पर उसके साथ नहीं आ रहे थे।
छोटा राज्य बड़ी राजनीति
यह कहावत हरियाणा के लिए ही है और यह सार्थक बनी हुई है। बीजेपी और जेजेपी दोनों में से कोई यह बताने कि स्थिति में नहीं है कि गठबंधन क्यों टूटा? दूसरे पार्टी की क्या गलती थी? बस अलग-अलग हो गए। यानी विरोध उतना था नहीं कि अलगाव हो जाता। तो क्या दोनों अपने फायदे के लिए अलग हुए हैं, फिलहाल इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता। कांग्रेस ने जो आरोप लगाया है, वह भी इसकी तस्दीक करता है।
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