हॉट बनी गाज़ीपुर लोकसभा सीट

पूर्वी उत्तर प्रदेश की गाजीपुर लोकसभा सीट इस चुनाव में हॉट रहेगी। इस सीट से कई दलों का अजेंडा सेट होगा, उनकी फ्यूचर प्लानिंग दिखेगी। इसका असर सिर्फ पूर्वी यूपी नहीं, बल्कि बिहार की कई  सीटों पर भी पड़ेगा। बीजेपी ने यहा 10 अप्रैल को अपने प्रत्याशी पारसनाथ राय के नाम का ऐलान किया, जबकि सपा-कांग्रेस गठबंधन ने पहले से यहां के निवर्तमान सांसद अफजाल अंसारी को प्रत्याशी घोषित कर दिया है। अब बसपा के उम्मीदवार के ऐलान का इंतजार सभी को है। अफजाल माफिया-राजनेता मुख्तार अंसारी के बड़े भाई हैं। मुख्तार की हाल ही में जेल में मौत हुई है।

सपा का समीकरण
सपा प्रमुख अखिलेश यादव कुछ दिनों पहले मुख्तार अंसारी के घर गए थे, जिसे स्थानीय लोग फाटक कहते हैं। वहां उन्होंने कहा था  कि दूर से चीजें साफ नहीं दिखतीं। जो लोग बताते हैं, उसे सही मानना पड़ता है। नजदीक जाकर देखने से सच्चाई पता चलती है। उनका इशारा मुख्तार अंसारी की ओर था, जिन्हें लोग माफिया भी कहते हैं और मसीहा भी। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के पहले मुख्तार-अफजाल के सपा में शामिल होने का अखिलेश ने विरोध किया था। अब उन्ही अखिलेश यादव को मुख्तार का मसीहाई रूप दिखाई दे रहा है। 30 मार्च को जब मुख्तार अंसारी का शव मुहम्मदाबाद लाया गया तभी यह चर्चा थी कि अखिलेश यादव भी जनाजे में शामिल होंगे। लेकिन वह नहीं गए। एआईएमआईएम के ओवैसी अगले दिन पहुंच गए। उन्होंने मिजाजपुरसी में बढ़त ले ली। इसके कुछ दिनों बाद पहले यादव परिवार के धर्मेंद्र यादव को अंसारी परिवार के घर भेजा गया और उसके बाद अखिलेश खुद वहां पहुंचे थे। सपा पर शासन में रहते हुए अराजकतावादी होने के आरोप लगते रहे हैं और मुख्तार अंसारी की मसीहा वाली छवि को सही मानने पर यह आरोप और पुख्ता होगा। अखिलेश यादव की यह राजनीतिक मजबूरी भी हो सकती है कि मुस्लिम वोटों के लिए उन्हें ऐसा कहना पड़े। मुख्तार के जनाजे में उमड़ी भीड़ की वजह से भी हो सकता है अखिलेश यादव के विचारों में बदलाव आया हो। माफिया का मसला कितना हावी होना वाला है, इसका अंदाजा अफजाल अंसारी की उस अपील से भी लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने मुख्तार अंसारी की मौत के बाद उनकी फरार पत्नी अफशां अंसारी को न्यायिक प्रक्रिया फेस करने को कहा है। अफशां अंसारी पर 75 हजार रुपये का इनाम घोषित है और अफजाल नहीं चाहते होंगे कि लोकसभा चुनाव के दौरान ऐसा कोई मसला उठे, जिस पर जवाब देना मुश्किल हो।

भाजपा का गुणा-भाग
बीजेपी ने यहां से पारसनाथ राय को उम्मीदवार बनाया है, जिनकी छवि साफ-सुथरी है। वह शिक्षण संस्थान चलाते हैं और यहां से सांसद रह चुके मनोज सिन्हा का चुनाव प्रबंधन देख चुके हैं। चर्चा यह भी थी कि यहां से मनोज सिन्हा के बेटे अभिनव सिन्हा को पार्टी टिकट दे सकती है। अभिनव को टिकट न देकर बीजेपी ने परिवारवाद के आरोप से खुद को बचा लिया है। चुनाव में विपक्ष के हाथ से यह मुद्दा चला जाएगा।इसी तरह मोहम्मदाबाद के विधायक रह चुके दिवंगत कृष्णानंद राय की पत्नी या बेटे को भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया। 2022 में जब बीजेपी प्रदेश में दोबारा सत्ता में आई थी, उस दौर में भी कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय चुनाव हार गई थीं। हो सकता है कि टिकट न मिलने की वजह यह भी रहा हो। कयास बाहुबली बृजेश सिंह के नाम का भी लगाया जा रहा था और चंदौली जिले की सैयद राजा सीट से विधायक सुशील सिंह का भी। लेकिन यदि बीजेपी बृजेश सिंह को ही टिकट दे देती तो माफिया पर खुलकर अटैक कैसे करती? सुशील सिह पर भी केस दर्ज हैं।  अब बीजेपी यदि गाजीपुर में माफिया पर अटैक करेगी तो उसका असर बिहार की कई सीटों पर भी होगा। हाल ही में बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी भी माफिया को प्रदेश से भगाने के बात कह चुके हैं।

प्रतिष्ठित सीट क्यों?
गाजीपुर लोकसभा सीट सपा-भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल क्यों बना है, इसे ऐसे समझ सकते हैं। इस संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की पांच सीटें हैं। जखनियां (एससी), सैदपुर (एससी), गाजीपुर सदर, जंगीपुर और जमानिया। 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी इन पांचों सीटों पर हारी थी।  जखनिया की सीट ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा ने जीती, जबकि बाकी चारों सीटों पर सपा के कैंडिडेट। उस समय सपा और सुभासपा का गठबंधन था। फिलहाल सुभासपा बीजेपी के साथ है। 2019 में राजभर ने बीजेपी का साथ छोड़ते हुए अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। यह सीट वाराणसी से सटी हुई है, जहां से पीएम नरेंद्र मोदी सांसद हैं। पीएम के निर्वाचन क्षेत्र से सटी हुई सीट पर भी जीत न मिले, यह बात बीजेपी को हजम नहीं हो रही। दूसरी और सपा के उत्साह की वजह यहां से उसके चार विधायकों का होना और अफजाल अंसारी का कैंडिडेट होना है। अंसारी परिवार का यहां राजनीतिक प्रभाव जगजाहिर है और  मुख्तार अंसारी की मौत से उपजी सहानुभूति की उम्मीद भी पार्टी को है। 2019 में जब अफजाल यहां से चुनाव जीते थे तब कैंडिडेट वह भले बसपा के थे, लेकिन सपा और बसपा का गठजोड़ था। हालांकि बसपा यहां जितनी मजबूती से लड़ेगी, सपा की मुश्किलें उतनी ही बढ़ेंगी। पारसनाथ राय की उम्मीदवारी घोषित होने के तत्काल बाद अफजाल अंसारी ने मीडिया से बात करते हुए मजाकिया अंदाज में कहा था कि आप ही लोगों में से कोई पूछ रहा था कि ये कौन हैं?  वैसे, अफजाल जिन पारसनाथ राय को अपरिचित बताने का प्रयास कर रहे हैं, वह तो इसी लोकसभा क्षेत्र के हैं। उनका गांव सिगड़ी जखनिया विधानसभा क्षेत्र में आता है, जबकि अफजाल का घर ( मोहम्मदाबाद) गाजीपुर के बजाय बलिया लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है।

(अफजाल अंसारी (बाएं) और पारसनाथ राय की तस्वीर ऑनलाइन से

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अच्छा लेख है

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