गदहा की यारी में...

सिंहासन बत्तीसी तक पहुंचने के लिए जिस तरह प्रेम पचीसी के बजाय गदहा पचीसी का सहारा लिया जा रहा है उससे इस भद्र जानवर को कितनी ख़ुशी हो रही होगी या दर्द हो रहा होगा ये फ़िलहाल पता नहीं। इस लौंडा पचीसी पर किसे दुलत्ती पड़ती है, यह तो 11 को पता चलेगा लेकिन फिलहाल तो गर्दभ पुराण का पाठ चालू है।

किस गधे की वापसी?
कृष्न चन्दर ने गधे पर 3 उपन्यास लिखे थे। 'एक गधे की आत्मकथा' 'एक गधे की वापसी' और 'एक गधा नेफा में'। अब यहाँ से कोई गधा नेफा में नहीं बल्कि नेपथ्य में जायेगा। किस गधे की वापसी होगी, फ़िलहाल तो इसका इंतजार ही ठीक रहेगा। एक लगातार दूसरी बार वापसी के लिये मचल रहा है तो दूसरा 14 साल का वनवास ख़त्म करने को व्याकुल है।

गधा और घास गधा गर्मी में मोटा होता है और बारिश के दिनों में दुबला। यह विचित्र है। जब घास नहीं मिलती है तो गधा क्यों मोटा होता है। कहा जाता है कि गर्मी के दिनों में जब वह घास का एक-दो तिनका खाते हुए कई कोस तक चला जाता है और जब पीछे मुड़कर देखता है तो यह सोचकर तृप्त हो जाता है कि उसने इतने कोस की घास चर ली। मारे आत्मसंतुष्टि के उसकी खाल चिकनी होने लगती है। इसके विपरीत बरसात के दिनों में जब चारों ओर हरियाली होती है तब वह थोड़ी दूर की भी पूरी घास नहीं चर पाता। इस चिंता में वह दुबला होने लगता है। गधा और घास का इतना नज़दीकी रिश्ता है, लेकिन जब कहावत बनाने की बात आई तब घोडा घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या, ये कहावत बनी। गधा उपेक्षित रह गया।

गधे की सवारी
घोड़े पर आप जितना आगे की ओर झुक कर बैठेंगे वह उतना तेज भागेगा। इसके विपरीत अगर आप गधे की सवारी कर रहे हैं तो आपको उसकी कमर पर बैठना होगा। कमर से आगे बैठने पर गधा चल ही नहीं पाता। हाँ, यदि आप खच्चर पर हैं तो कहीं पर बैठ सकते हैं।

गधे की हीनता प्रेम करने के लिए जरूरी है कि आपकी चिकनी खाल हो और आपकी जेब में ढेर सारा माल हो नहीं तो बकौल कृष्न चंदर कोई गधी भी आपको घास नहीं डालेगी।

क्या करे पब्लिक?
अब पब्लिक तो हर पांच साल पर घोड़े की चाह में गदहा चुन लेती है और गधे भी एक दूसरे को गदहा कहकर आत्मतुष्टि के भाव से फूले रहते हैं। देख लीजिए, बाघ दूसरे बाघ का मांस नहीं खाता लेकिन ये तो एक-दूसरे को ही दुलत्ती मार रहे हैं।

Comments

Naveen Krishna said…
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