ये इंतज़ार गलत है कि शाम हो जाये

ये रावण हमेशा शाम में ही क्यों जलता है? दीवाली की पूजा मध्य रात्रि में करने की वजह क्या है? रक्षाबंधन का त्योहार सुबह से ही क्यों मनाया जाता है (हालांकि अब कुछ लोग भद्रा का काल लेकर गाल बजाने लगे हैं) और होली बसंत पंचमी यानी 40 दिन पहले से ही क्यों मनाने लगते हैं?

प्रगतिशील जो भी कहें, पर सारा सिस्टम जाति पर आधारित है। ठाकुर राजा होते थे सो दोपहर में शस्त्र पूजा और फिर पेट भर भोजन और फिर आराम। इसके बाद वे शाम में निकलते थे और होता होगा शौर्य पराक्रम और रावण दहन का प्रहसन। इस साल का तो पता नहीं पर हाल तक ज्योतिरादित्य सिंधिया दशहरे पर प्रजा को दर्शन देते थे, जबकि देश आजाद होने और संविधान के लागू होने के बाद से ये हरकतें अवैध घोषित हैं।

बनिया वर्ग अर्थ केंद्रित होता है और कई बार यह पाया जाता है कि जिसके घर में शाम में बरात आने वाली हो वह भी दिन में दुकान खोले बैठा है। तो दीवाली में दिन में पूजा कर दुकानदारी को क्यों डिस्टर्ब करेगा। जाहिर सी बात है कि दिन में दुकान चलेगी और जब बाजार से ग्राहक गायब हो जाएंगे, तब लछमी पूजा होगी।

ग्रामीण और कस्बाई भारत का अनुभव बताता है कि इस कायनात में ब्राह्मण और बनिये सबसे पहले जगते हैं। क्यों,क्योंकि दोनों को दुकान खोलनी होती है। एक को धर्म की और दूसरे को नून, तेल, धनिया की। और दोनों ही जगहों पर ग्राहक सुबह से आने लगते हैं। रक्षाबंधन दरअसल पुरोहित और जजमान का त्योहार था जो बाद भाई-बहन का पर्व बना। और शुरुआती दौर से ही यह त्योहार अहले सुबह से मनाया जाता है।

होली यानी कीचड़, रंग, पानी, गालीगलौज सबकी स्वीकार्यता। गन्दी तुकबन्दियाँ। कोई रोकने वाला नहीं। फुल मस्ती, समय की कोई चिंता नहीं 40 दिनों तक। यह बात सुनने में भले बुरी लगे, लेकिन जाति सिस्टम बनाने वालों ने इसलिए इसे शूद्रों का त्योहार मान लिया।

वर्ण व्यवस्था के मुताबिक, चार जातिया ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र और चार पर्व, रक्षाबन्धन, दशहरा , दीवाली और होली। खुद कनेक्शन देख लीजिए।

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