सामाजिक न्याय या नव सामंतवाद
सोशल साइट्स पर ऐसी भी पोस्ट दिख रही हैं कि चारा घोटाले, हालांकि इसे पशुपालन घोटाला कहना ज्यादा सही है, में लालू यादव को सिर्फ इसलिए दोषी ठहराया गया है, क्योंकि वह पिछड़ी जाति से आते हैं। कहने का आधार यह है कि इसी मामले में सवर्ण जगन्नाथ मिश्र को बरी कर दिया गया। कई महीने पहले दिल्ली के एक हिंदी दैनिक के संपादकीय पेज़ पर एक लेख छपा था कि विनोद कांबली का खेल सचिन तेंदुलकर से कमतर नहीं था, लेकिन उनके मुकाबले सचिन को ज्यादा मौके मिले, क्योंकि वह ब्राह्मण हैं। एक आधार और भी बताया जाता है कि लालू के पूरे परिवार को मनुवादी ताकतें निशाना बना रही हैं। बेटा-बेटी-दामाद-पत्नी सबको किसी न किसी घोटाले में फंसा दिया गया है।
अब इसका मतलब यह कि बिहार में पशुपालन घोटाला हुआ ही नहीं था। गॉंव में उन्नत मुर्रा भैंसे घूमती दिखाई देती थीं। सामाजिक न्याय के फार्मूले ने राज्य को नई ऊंचाइयां दे दी थी। लालू यादव ने हायर एजुकेशन को दुरुस्त कर दिया था। साल में न्यूनतम 180 दिन पढ़ाई होने लगी थी और सेशन लेट तो होता ही नहीं था। हर साल इंटर कॉलेज और इंटर यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स इवेंट टाइम पर होते थे। इंटरनेशनल लेवल के क्रिकेट स्टेडियम बना दिये गए थे। हर साल कई इंटरनैशनल खिलाड़ी पैदा हो रहे थे। MBBS में अपने बैच में टॉप करने के बाद डॉ मीसा भारती मरीजों के चेकअप में जुट गई थीं। भूरा बाल साफ करो, ऐसा किसी ने कभी कहा ही नहीं था। बिहार राज्य पथ परिवहन की बसें आंतरिक और इंटरस्टेट और सिटी रूटों पर दौड़ने लगी थीं। बिस्कोमान के सभी कर्मचारियो को सैलरी मिलने लगी थी। तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी अरुण पाठक को बड़ा बाबू कहने वाले को लालूजी हड़का देते थे। सामंती मानसिकता को तोड़ने के सारे जतन किये गए थे। 1995 में सीएम के रूप में दूसरी बार शपथ लेते वक्त पटना में लालूजी ने लौंडा नाच कराया ही नहीं था। राज्य में अपहरण उद्योग की कमर तोड़ दी गई थी और किडनैपर लालूजी की छाया देखकर ही निकल लेते थे। और सिवान वाले चंदा बाबू अपने 2 बेटों को तेज़ाब से नहलाकर मार डालने की शिकायत लेकर जब पटना गए थे तो लालूजी जनता दरबार से उठकर चल नहीं दिए थे, बल्कि चंदा बाबू को पास बिठाकर पूरी बात सुनी और शहाबुद्दीन पर तत्काल केस दर्ज करवा दिया था।
मीसा भारती को तो हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने अपने यहां बोलने के लिए बुलाया ही था, वो तो सवर्ण मीडिया ने हार्वर्ड से झूठ बुलवा दिया कि मीसा ने खाली डायस पर खड़े होकर फ़र्ज़ी फ़ोटो खिंचवा लिया था। हार्वर्ड से यह झूठ भी बुलवाया गया कि मीसा ने उस प्रोग्राम में शामिल होने के लिए टिकट खरीदा था। मीसा भारती ने एमबीबीएस के एंट्रेंस में भी टॉप किया था। ये तो पिछड़ो और दलितों के विरोधी मीडिया का दुष्प्रचार था कि बाद में उन्हें कोटे से दाखिल मिला था। लालूजी के साले साधु यादव तो बेचारे अपने नाम के मुताबिक सज्जन पुरुष है, मनुवादी मीडिया उन्हें बदनाम करने के लिए उनके फ़र्ज़ी किस्से गढ़ा करता था। समानता का आलम यह हो गया था कि सारे यदुवंशी दलितों की पान्त में बैठकर खाने लगे थे। रोहिणी की शादी में पटना के शोरूम से गाड़ियां और फर्नीचर कहां उठाये गए थे?वह तो सामाजिक न्याय और लालू यादव के तत्कालीन हनुमान ददन यादव को कमज़ोर करने के लिए झूठ बोला गया था। दबे कुचले परिवेश से आने वाले तेजप्रताप नें कब मोदी की खाल खिंचवाने की बात कही थी।
और जब पहली बार जेल जाने की नौबत आई तो लालू यादव ने कब राबड़ी देवी को सीएम बनने को कहा था। उन्होंने तो जयप्रकाश नारायण यादव और अब्दुल बारी सिद्दकी जैसे नेताओं का नाम रखा था। वो तो इन नेताओं ने प्रस्ताव पास कर राबड़ी देवी को सीएम बनवा दिया था। लालू यादव ने जितनी भी सज़ा काटी, वो किसी गेस्ट हाउस में कहां काटी। सारी सजाएं असली जेल में ही काटी थी। बीएमपी का तो फुलवारीशरीफ में गेस्ट हाउस ही नहीं है।
अब इतना भला और नेकदिल आदमी तो विरोधियों को चुभेगा ही।
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