रांची जेल की खैनी पार्टी


कई साल पहले बोस्टन की टी पार्टी हुई थी, जिसका इतिहास की किताबों में जिक्र है। उसके कई साल बाद दिल्ली की तिहाड़ जेल में कलमाडी की टी पार्टी हुई थी, जिसका जिक्र तत्कालीन मीडिया रिपोर्ट्स में है। अब वक्त याद रखेगा बिरसा मुंडा जेल में हुए एकल खैनी स्वादन के लिए। हालांकि इस मामले को मीडिया में खैनी की तरह ही हल्के में लिया जा रहा है, जबकि इसका किरदार काफी वजनी है। इस खैनी कांड के किरदार पर 900 करोड़ से अधिक के पशुपालन घोटाले में शामिल होने का आरोप है। कई मामलों में दोष साबित हो चुका है और एक में सजा भी हो चुकी है।
सवाल यह है कि क्या जेल में बाहर से कोई भी चीज भेजी जा सकती है? आज खैनी, कल गांजा, परसों भांग, फिर स्मैक, चरस कुछ भी भेज दो। फिर जेलों के अंदर बार--बार तलाशी क्यों ली जाती है नशीले पदार्थों की। या खैनी को परम तत्व मानते हुए छुूट दी गई है।

बचपन में खैनी पर सुनी एक कविता याद आ रही है

हम काहें खइनी खाइना?
एक दिन बीच सभा में बइठल रहनी
खइनी लेके अइंठत रहनी
जब दुख बुझाइल दूना
त पाकिट में से कढनी चूना
आ ओकरा के खैनी में मिलाय
तब देनी मुंह में पठाय
भर मुंहे जब थूक आ गइल
त दरी उठाके देनी बढ़ाय
दरिया वाला कहलस
ठहर, रुक, आइना
हम काहें खइनी खाइना?
दू-चार बोली, दू-चार बात
ऊपर से देलस दू चार लात
आपन केहू ना लउकल
त गते से पराइना
हम काहें खइनी खाइना?
एही से कहीला भइया
जे खइनी के अनुरागी बा
ओकरा पीठ पर देख साफा
दू बित्ता के दागी बा
पुरुवा में जब दरद होला
त गीत बनाके गाइना
हम काहें खइनी खाइना?

कलमाडी को तिहाड़ जेल में जिस जेलर ने टी पार्टी दी थी, उसे कालेपानी की सजा दे दी गई थी यानी अंडमान ट्रांसफर कर दिया गया था। अब मामला उछले तो हो सकता है कि बिरसा मुंडा जेल के जेलर पर भी कुछ हो जाए, लेकिन इससे क्या? ट्रांसफर-पोस्टिंग तो चलती रहती है, लेकिन बड़े भाग्य से बड़ों-बड़ों की सोहबत का मौका मिलता है। ज्ञानी जन कह भी गए हैं कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है।
ऐसे महापुरुषों का जन्म यूं ही नहीं हो जाता। जब हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है तो चमन में ऐसा दीदावर पैदा होता है जो स्कूटर पर चारा और सांड़ दोनों ढो देता है। जो निर्विकार भाव से कलियुग के परम तत्व 'अर्थ' के प्रति समर्पित रहता है।
अब विद्यार्थी तिहाड़ की जेल पार्टी के बाद बिरसा मुंडा की खैनी पार्टी (एकल ही सही) को चाव लेकर पढ़ेंगे, ऐसी उम्मीद है।

अहम सवाल
क्या वीआईपियों को जेलों में यह सुविधा नहीं मिलनी चाहिए? अगर वहां के साधारण निवासियों को यह फैसिलिटी मिल रही है तो यह गलत है लेकिन वह वीआईपी ही क्या, जिसे उसके दर्जे की खातिरदारी न मिले। नियम भी तो यही कहता है कि जेल सजा की नहीं सुधारने की जगह है और अगर कोई जेलर इस पर अमल करने की कोशिश करता है तो इसमें बुराई ही क्या है?

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