गोद में लाल किला
दिल्ली के लाल किले में साउंड एंड लाइट का शो चलता है। उसमें नादिरशाह के काल में जब मुहम्मद शाह रंगीला का जिक्र आता है तो कथावाचक एक डॉयलॉग बोलता है जिसका भावार्थ यह है कि जब रंगीले शाहों का जमाना आता है तो लाल कुँवरें जीनत महल बन जाया करती हैं। लाल किले में सुनाई जाने वाली कहानी के मुताबिक लाल कुंवर उस दौर में दिल्ली की मशहूर तवायफ थी, जिसने अपने भाई को वज़ीर और तरबूज बेचने वाली अपनी दोस्त को राजमहल के हरम में मुलाज़िम बनवा दिया था। जीनत महल जफर की पत्नी का भी नाम था।
मधुशाला में बच्चन ने लिखा है कि अलग अलग जातियों के लोग प्रधान होने पर कैसा व्यवहार करते हैं। उसमें लिखा है कि कायस्थ प्रधान हो जाएगा तो दिन भर पीता ही रहेगा। रंगीला शाह कायस्थ नहीं था, कायस्थों ने बहुत सी आदतें मुगलों से सीखी थीं लेकिन रंगीला शाह ने यह आदत पता नहीं कहां से सीख ली थी। यह भी कहा जाता है कि जब हरकारा नादिरशाह के हमले वाली चिट्ठी लेकर पहुंचा था तब शाह ने तरन्नुम में कहा था कि यह वाहियात चिट्ठी प्याले में डुबो देने लायक है।
लाल किले के अंदर एक संग्रहालय है जिसे 1857 का म्यूजियम कहते हैं। इसमें आखिरी मुगल बादशाह के नाम से दो शेर अंकित हैं-
दमदमे में दम नहीं अब खैर मांगो जान की
ऐ जफर ठंडी हुई शमशीर हिंदुस्तान की
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गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की
तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की।
उर्दू शायरी को हिंदी में रूपांतरित करने वाले प्रकाश पंडित का कहना था कि पहला शेर मेजर हडसन का है जिसने जफर के बेटों -पोते को गिरफ्तार किया था। हडसन अच्छी उर्दू जानता था और पहला शेर कहकर उसने जफर पर तंज किया था। दूसरे शेर में जफर ने उसका जवाब दिया था। जेएनयू में नामवर सिंह के बाद हिंदी-उर्दू के विभागाध्यक्ष रहे सज्जन (नाम भूल रहा हूँ, सम्भवतः असलम परवेज़) ने मुझसे इस बारे में कहा था कि यह शेर मुजतर खैराबादी का है, जिसे जफर का बताया जाता है। उनक कहना था कि हडसन भले ही उर्दू जानता हो लेकिन दमदमा यानी तोपखाना का इतना शानदार इस्तेमाल उसके बूते के बाहर की बात थी। हालांकि करीब 9 साल पहले जावेद अख्तर (मुजतर खैराबादी के बेटे जांनिसार अख्तर और जांनिसार के बेटे जावेद अख्तर) ने फ़ोन पर हुई बात में इससे इनकार किया था कि यह शेर मुजतर का है। वैसे अब उनके बयान आ रहे हैं कि यह शेर उनके दादा का ही है। इसी म्यूजियम में बिस्मिल की अमर रचना सरफरोशी की तमन्ना का एक महत्वपूर्ण शेर, 'खींचकर लाई है हमको कत्ल होने की उम्मीद, आशिकों का आज जमघट कूचा ए कातिल में है' उनके नाम से लगी ग़ज़ल से गायब है।
मधुशाला की बात का हवाला देते हुए यह कहा जा सकता है कि जब देश में बनिया बुद्धि वाले हुक्मरां हो जाते हैं तो हर चीज से पैसा कमाने की सोचते हैं। मेट्रो स्टेशनों के नाम किसी कंपनी को देकर माल उगाहते हैं और दावा करते हैं कि इससे जनता की भलाई करेंगे। नाम बेचने से पैसा भी आने लगता है लेकिन दूसरी तरफ किराया भी बढ़ा देते हैं। ट्रेन के सफर में फ्लेक्सी फेयर लागू करते हैं। नतीजतन 700 रुपये की सीट 1050 तक की हो जाती है। वेतनभोगियों को और दूहने के लिए 40 हज़ार तक स्टैंडर्ड डिडक्शन का फॉर्मूला लेकर आते हैं और 15 हज़ार सालाना का मेडिकल और 19200 के सालाना ट्रांसपोर्ट अलाउंस को उसमें जोड़ देते हैं। इस तरह इनकम टैक्स में छूट मिलती है महज़ 5800 रुपये पर लेकिन ढोल पीटते है 40 हज़ार का। क्या लाल किले को गोद लेने वाली कंपनी यूनेस्को की धरोहर सूची में शामिल इस इमारत में हुई भूलों को भी सुधारेगी या साउंड एंड लाइट शो में सुने जाने वाले जफर के एक बेबस संवाद ,' हमारी हुकूमत यमुना के पानी पर नहीं है' की तरह इस मामले में खामोश ही रहेगी।
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