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Showing posts from August, 2018

हिमा ही नहीं, शाइनी भी कर चुकी हैं ऐसी गलती

भारत की हिमा दास दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से जकार्ता एशियाई खेलों के 200 मीटर की रेस से मंगलवार को बाहर हो गईं। वजह यह थी कि गन शूट होने से पहले ही उन्होंने दौड़ना शुरू कर दिया था। भ...

उड़ गया हंस

मैं जी भर जिया, में मन से मरूं लौट कर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? मौत से ठन गई कविता में अटल जी ने ये पंक्तियां भी लिखी थीं। लौट कर आने का दावा उन्होंने किडनी की बीमारी पर जीत हासिल ...

दिल्ली में कौन बाहरी नहीं है?

दिल्ली में कौन लोकल है और कौन बाहरी? किस आधार पर बिहारी (इसमें ईस्टर्न यूपी वाले भी शामिल हैं) दिल्ली में बाहरी हैं? वे other state के हैं लेकिन दिल्ली में एक शब्द है बाहरी राज्य यानी outer states. ...

हरिवंश होने का अर्थ

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राज्यसभा के उप सभापति चुने गए हरिवंश जी का क्या परिचय है? क्या एक सांसद, एक पत्रकार, प्रधानमंत्री का राजनीतिक सलाहकार, एक सम्पादक, एक बैंकर या और भी कुछ? दरअसल, हरिवंश होने का एक मतलब एक ऐसा शख्स भी है जिसने जो चाहा, उसे हासिल किया। इसके अलावा एक ऐसा मैसेंजर भी कि यदि आप किसी फील्ड में टॉप पर हैं तो उसके बाद आपको और आगे बढ़ने के लिए लाइन चेंज कर लेनी चाहिए। हरिवंश जी ने टाइम्स ग्रुप में ट्रेनी के तौर पर जॉइन किया, फिर छोड़ दिया। 3-4 साल बैंक में जॉब की। फिर रांची में एक मृतप्राय हो चुके अखबार प्रभात खबर को संभाला। यह वो दौर था, जब रांची में रांची एक्सप्रेस की तूती बोलती थी। हरिवंश जी ने प्रभात खबर को उससे बहुत आगे पहुंचा दिया। और जब सम्पादक के रूप में उनका कैरियर चरम पर था तो उन्होंने सांसद बनने की ठानी। मनोनीत होकर नहीं, निर्वाचित होकर। यह अलग बात है कि तब उनके सामने कोई कैंडिडेट नहीं था। आज सम्भवतः पहली बार उन्होंने चुनाव का सामना किया और इसमें भी पास हुए। थोड़ी पुरानी पोस्ट पहले भी हो चुका है हरि बनाम हरि राज्यसभा में आज होने जा रहे उपसभपाति के चुनाव में हरि ब...

राजेंद्र यादव की मौजूदगी का मतलब

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2005 का दौर था। मौका था हंस की वार्षिक गोष्ठी का। उस साल को प्रेमचंद की 125वीं जयंती के रूप में भी मनाया जा रहा था। विषय था ‘प्रेमचंद और भूमि समस्या’ और वेन्यू था दिल्ली में दीनदयाल उपाध्याय पथ पर स्थित राजेंद्र सभागार। हंस के संपादक राजेंद्र यादव अपनी कार से उतरे। सीढ़ियों पर चढ़ते वक्त उनकी छड़ी हाथ से छूट गई। एक सज्जन उसे उठाने के लिए लपके तो राजेंद्र यादव ने उन्हें मना कर दिया और खुद झुककर अपनी छड़ी उठाई। गोष्ठी बढ़िया जमी जिसमें नामवर सिंह भी थे। बाद में उसी गोष्ठी के दौरान एक लेखिका ने कहा कि नामवर सिंह यूं तो किसान की तरह दिखते हैं लेकिन उनका किसानी से कोई लेना-देना नहीं है। इस बात को बाद में उस साल लमही में आयोजित प्रेमचंद जयंती के कार्यक्रम से भी जोड़कर दिलचस्प किस्से सुनाए गए जिसमें नामवर सिंह और राजेंद्र यादव दोनों मौजूद थे। उसके बाद से यह सालाना आयोजन बाल भ‌वन के पीछे ऐवाने गालिब में होने लगा और यह सिलसिला आज तक जारी है। उसके करीब पांच साल बाद 2009 में युवाओं पर केंद्रित सब्जेक्ट पर हंस का व्याख्यान हो रहा था। राजेंद्र यादव पर शारीरिक अस्वस्थता हावी हो र...