उड़ गया हंस

मैं जी भर जिया, में मन से मरूं
लौट कर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?

मौत से ठन गई कविता में अटल जी ने ये पंक्तियां भी लिखी थीं। लौट कर आने का दावा उन्होंने किडनी की बीमारी पर जीत हासिल कर अमेरिका से लौटने को लेकर कहा था या वह जन्म मरण के बंधन से मुक्ति नहीं चाहते थे, यह उनकी कई बातों की तरह रहस्य के पर्दे में है। जहां अधिकतर लोग जन्म मरण के चक्र से मुक्ति चाहते हैं वहीं अटल जी की इच्छा क्या इसके विपरीत थो। क्या वह महात्मा बुद्ध नहीं बनना चाहते थे बल्कि यशोधरा की तरह यह सवाल करना चाहते थे कि 'कह मुक्ति भला किसलिए तुझे मैं पाऊं?'

सावन शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगा के किनारे महान कवि तुलसीदास ने प्राण त्यागे थे और उससे एक दिन पहले यानी षष्ठी तिथि को कवि वाजपेयी जी ने यमुना किनारे आखिरी सांस ली।

उनका जन्म 25 दिसंबर को हुआ था लेकिन जितने साल से वह मृत्यु शैय्या पर थे, वह सलीब पर झूलने जैसा ही था, यीशु की तरह।

कुरुक्षेत्र के मैदान में जब भीष्म गिरे तो उसका वर्णन करते हुए दिनकर ने रश्मिरथी में लिखा

कुरुकुल का दीपित ताज गिरा
थक कर बूढ़ा जब बाज़ गिरा
भूलुंठित पितामह को विलोक
छा गया समर में महाशोक
कुरुपति ही धैर्य न खोता था
अर्जुन का मन भी रोता था

वही हालात वाजपेयी के निधन के वक़्त था। उनके अपने दल से कम लोग दूसरे दलों के नहीं जुटे थे। मनुष्य की लोकप्रियता का एक पैमाना यह भी है कि उसके जनाज़े में कितने लोग जुटे थे। श्राद्ध में कितने आये, इससे उसके बच्चों की लोकप्रियता का पता चलता है।

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