टिकैत के राजस्थान दौरे से किसे राहत?
यूपी-दिल्ली सीमा पर चल रहा आंदोलन किसान आंदोलन है या जाट आंदोलन, यह मसला कई बार उठ चुका है। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत इस आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा बन गए हैं। कुछ दिनों तक हरियाणा में घूम-घूमकर पंचायत करने के बाद इन दिनों वह राजस्थान के दौरे पर हैं।
हरियाणा में जिन इलाकों में उनकी सक्रियता रही और अब राजस्थान के चुरू से लेकर सीकर तक वह पहुंचे, उससे सीधा दिख रहा है कि वह सिर्फ स्वजातीय यानी जाटों के प्रभाव वाले इलाकों में जा रहे हैं। वहां वह भले केंद्र सरकार और भाजपा पर बरसते दिख रहे हों, लेकिन जो वे कर रहे हैं, उससे राहत में भाजपा ही रहेगी।
राजस्थान का सचिन पायलट प्रकरण याद करिये। उस विवाद के तुरंत बाद राज्य की राजनीति में हाशिये पर चले गए जाट नेताओं को लुभाने की कोशिश हुई। कांग्रेस ने गोविंद सिंह डोटेसरा (जाट) को प्रदेश अध्यक्ष बनाया तो बीजेपी ने सतीश पूनिया (जाट) को। बीजेपी की जाट प्रदेश अध्यक्ष बनाने की एक मंशा वसुंधरा राजे पर भी कंट्रोल रखना था जो पैदा तो राजपूत परिवार में हुई हैं लेकिन राजस्थान में जाट परिवार में शादी होने के बाद उनकी राजपूतों से अधिक जाटों में स्वीकार्यता है। बीजेपी यहां तक परेशान नहीं थी, क्योंकि उसके साथ रालोपा प्रमुख हनुमान बेनीवाल (जाट) थे। किसान आंदोलन के दौरान हनुमान भी एनडीए का साथ छोड़ गए। बीजेपी के पास जाटों के प्रतिनिधि के रूप में वसुंधरा तो हैं लेकिन उनकी पार्टी के बड़े नेताओं से ठनी हुई है।
जब राजस्थान में राकेश टिकैत की एंट्री हुई तो जाहिर है कि इस समय वे सबसे बड़े किसान और जाट नेता का चेहरा बने हुए हैं। जब तक राकेश टिकैत राजस्थान में सक्रिय रहेंगे, बीजेपी की विरोधी पार्टियों को चैन से नहीं रहने देंगे। इसके साथ ही जाटों में जाति की राजनीति करने वाले भी परेशान रहेंगे, जो फिलहाल बीजेपी के साथ नहीं हैं। ऐसे में किसान आंदोलन जितना लंबा चले, उस पर जाट आंदोलन होने का तोहमत लगे, राकेश टिकैत जितने जाट बहुल इलाकों में सक्रिय रहें, फायदा किसे होगा-समझना मुश्किल नहीं है।
आंदोलन में कैसे टिके हैं टिकैत पढ़ना चाहें तो नीचे दिए लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
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