कोरोना : सामूहिक क्रीमैशन क्यों नहीं?

कोरोना काल में जिस तरह लोगों की मौत हो रही है, उनसे श्मशान-कब्रिस्तान में लाशों की कतार दिख रही है। सवाल यह है कि क्या सामूहिक दाह संस्कार या सामूहिक सुपुर्दे खाक की प्रक्रिया नहीं अपनाई जा सकती?

बक्सर में 1764 में जो इतिहास प्रसिद्ध लड़ाई हुई थी, उस युद्ध के मैदान के बगल में एक कब्रगाह भी है। उसमें उस युद्ध में मारे गए सभी मुसलमान सैनिक दफन हैं। कहा जाता है कि इस्लाम में ऐसा प्रावधान है कि युद्ध में मारे गए सैनिकों की सामूहिक कब्र बनती है। आज इमरजेंसी के हालात हैं, क्या आज ऐसा इंतजाम नहीं हो सकता?

केदारनाथ में 2013 में जो आपदा आई थी, उसमें भी शवों का सामूहिक दाह संस्कार किया गया था। महाभारत काल में कहा जाता है कि भीम ने जब किंचक का वध किया तो उसके बाकी बचे 99 भाई भीम को सबक सिखाने वहां आ गए थे। भीम ने श्मशान घाट में इन सभी को मार डाला था, और सामूहिक चिता पर सभी को जला दिया था। तो क्या अब के हालात में सामूहिक चिताएं नहीं बन सकतीं?

दफनाने के लिए जगह कम पड़ती जा रही हैं, जलाने के लिए लकड़ियां नहीं मिल रही हैं, विद्युत शवदाह गृह जरूरत के मुताबिक हैं नहीं, तो समाधान तो यही हो सकता है कि सामूहिक रूप से जलाया-दफनाया जाए।

Photo : 
Amarjeet Kumar Singh

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