बिहार उपचुनाव, नतीजे उम्मीद के मुताबिक, पर संदेश गहरे हैं

बिहार में दो सीटों के लिए हुए उपचुनाव में कुछ भी अप्रत्याशित नहीं हुआ। 50 फीसदी से कुछ प्रतिशत अधिक हुए मतदान में सत्ता नहीं बदलती, यह फॉर्म्युला कायम रहा। मोकामा सीट पर अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी और गोपालगंज सीट पर दिवंगत विधायक सुभाष सिंह की पत्नी कुसुम देवी विजयी रहीं। मोकामा में जीत जहां एकतरफा रही, वहीं गोपालगंज में लास्ट राउंड तक रोमांच बना रहा।

गोपालगंज सीट पर भाजपा के पक्ष में परिस्थितियां थीं। नहीं तो बीजेपी वहां हार जाती। बीजेपी वहां 1794 वोटों से ही जीती। वहां बीएसपी कैंडिडेट इंदिरा यादव को 8854 मत मिले। इंदिरा यादव तेजस्वी यादव की सगी मामी हैं। उनके नहीं रहने पर यह वोट गठबंधन उम्मीदवार को जाता। एआईएमआईएम के अब्दुल सलाम को 12214 वोट मिले। मुस्लिम वोट बीजेपी को तो मिलने नहीं थे, ये भी राजद कैंडिडेट मोहन प्रसाद गुप्ता को मिलते, लेकिन उनके ये वोट कम हो गए। राजद ने बीजेपी का वैश्य वोट काटने के लिए मोहन गुप्ता को उतारा, यह रणनीति ठीक थी, लेकिन सफल नहीं हो पाई। वैश्य वोट बीजेपी का आधार वोट माना जाता है। लेकिन बड़ी बात है बीजेपी का वहां जीतना। इस समय बिहार में सभी दल एक गठबंधन में हैं, बीजेपी के पक्ष में चिराग पासवान के अलावा कोई नहीं था।

मोकामा, जिसे राजनीति का बैड लैंड कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा। यहां बीजेपी और राजद दोनों के कैंडिडेट तो कोई और थे, लेकिन नाम उनके पतियों का था। सुशासन बाबू की इमेज पर असर न पड़े, इसलिए नीतीश कुमार ने चुनाव प्रचार में मोकामा जाने से परहेज किया और इस वजह से गोपालगंज भी नहीं गए।  कभी लालू यादव कहते थे कि नीतीश के पेट में दांत है और चुनाव में उसी पेट की चोट की बात कहकर वह प्रचार करने नहीं गए। आमलोगों के पेट में यह बात पची नहीं। उन्होंने एक रिकॉर्डेट संदेश भिजवाया जिसमें उन्होंने राजद उम्मीदवार नीलम देवी को वोट देने की अपील की लेकिन अनंत सिंह का नाम लेने से बचे। हालांकि कभी अनंत सिंह और दुलारचंद यादव का समर्थन लेने और मंच साझा करने में नीतीश कुमार को दिक्कत नहीं थी। बिहार विधानसभा के लिए 2020 में चुनाव हुए था। कोरोना की बंदिशें लागू थीं, सोशल मीडिया पर बनाई गई हवा के मुताबिक राजद गठबंधन चुनाव जीत रहा था। अनन्त सिंह के पटना वाले आवास पर 15 हज़ार लोगों को खिलाने के इंतजाम था, इतनी भीड़ जुटाना कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन था। यहां भाजपा ने भी बाहुबली पर ही यकीन किया था। ललन सिंह की पत्नी यहां मैदान में थीं। उनके समर्थन सजायाफ्ता और पूर्व विधायक सूरजभान सिंह थे। यानी यह तय था कि जीते कोई, हारेगा लोकतंत्र।
 
मोकामा गंगा के किनारे बसा है और यहां दाल की बंपर पैदावार होती है। इस राजनीतिक और भौगोलिक क्षेत्र में हर किसी की दाल नहीं गलती। नीलम देवी भले राजद और महागठबंधन उम्मीदवार थीं, लेकिन नाम अनंत सिंह का ही चल रहा था। हार-जीत, समर्थन-विरोध सबकी धुरी वही थे। वहां न मोदी के विकास पर वोट था न नीतीश के सुशासन पर। जाति की बेड़ी इतनी मजबूत है कि टूटती दिखती नहीं। 

गोपालगंज में अगर इंदिरा यादव नहीं होतीं, एआईएमआईएम कैंडिडेट नहीं होता तो क्या बीजेपी यह सीट जीत पाती? हरगिज नहीं। इस उपचुनाव ने कोई अप्रत्याशित परिणाम तो नहीं दिया लेकिन इतना संकेत जरूर दे दिया कि बीजेपी वहां कमजोर है। बीजेपी को बिहार की राजनीति करनी है तो वहां नए सहयोगी तलाशने होंगे और पार्टी में ऐसी लीडरशिप तैयार करनी होगी, जिसके पीछे वोटर जुट सकें।



जाति का हीरो होता है अपराधी

अपराधी अपनी जाति का हीरो होता है। यह पुरानी बात है। पुरानी थ्योरी यह भी है कि वह सपोर्टिंग जातियों का भी हीरो होता है। राजनीति में यह फार्मूला चलता है और बिहार का मोकामा विधानसभा क्षेत्र इसका बेहतरीन उदाहरण है। मोकामा कोई दूरदराज का नहीं, बल्कि पटना जिले का हिस्सा है, जो बिहार की राजधानी है।

यहां इसलिये उपचुनाव हुआ, क्योंकि यहां के विधायक अनंत सिंह के घर में प्रतिबंधित एके 47 राइफल और हथगोले मिले थे और इसमें सज़ा होने पर उनकी विधायकी चली गई थी। उनकी पत्नी चुनाव मैदान में थीं और जीतीं। अनंत सिंह इलाके में छोटे सरकार के नाम से चर्चित हैं। अब ये छोटे सरकार हैं तो जाहिर है कि कोई बड़ा सरकार भी रहा होगा। यह रुतबा उनके बड़े भाई दिलीप सिंह को हासिल था। दिलीप सिंह के बारे में कहा जाता है कि वह कांग्रेस के लिए बूथ लूटते थे। लालू यादव के सीएम बनने के बाद जब  बिहार में अपराधियों का राजनीतिकरण हुआ तो दिलीप सिंह मोकामा से विधायक बन गए। बाद में उन्हीं के गुर्गे रहे सूरजभान सिंह ने उन्हें हरा दिया था। 
इस चुनाव में भाजपा उम्मीदवार सोनम देवी थीं, लेकिन नाम उनके पति ललन सिंह का चल रहा था, जिनपर दर्जनों संगीन मुकदमे हैं और वह सूरजभान सिंह के खास हैं। अनंत सिंह 2005 से लगातार चुनाव जीत रहे हैं, इस बार उनकी पत्नी जीती। सूरजभान सिंह लोजपा के टिकट पर पूर्व में सांसद चुने जा चुके हैं।

Comments

Shyam Chawda said…
सही विश्लेषण है bjp और वहां की राजनीति का
Unknown said…
यह पेट में चोट और 'चोट की राजनीति का अच्छा विश्लेषण है

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